इन्दु० । पहिले तो यह देखो कि इनके पीठ में भी कोई जख्म लगा है या नही जिससे यह मालूम हो कि इन्होने लडाई में पीठ तो नही दिखाई है, इसके बाद इस बात को जांच करो कि इनमें कुछ दम है या नही । अगर इन्होने लडाई में वीरता दिखाई और बहादुरो के साथ प्राण त्याग किया है तो कोई चिन्ता नही, मैं बड़ी प्रसन्नता से इनके साथ सती होकर अपना कर्तव्य पूरा करूगी, और इनके हाथ की तलवार मुझे विश्वास दिलाती है कि इन्होने लडाई में पीठ नही दिखाई जमना० । मेरा भी यही खयाल है, और वीर पत्नियों के लिए रोना केसा? उन्हें तो हरदम अपने पति के साथ जाने के लिए तैयार रहना ही चाहिये।
सरस्वती । (प्रभाकरसिंह को नाक पर हाथ रख कर ) जोते हैं जख्मी होने के समय से बेहोश हो गये है !!
सरस्वती की बात सुन कर जमना और इन्दुमति ने भी उन्हें अच्छी तरह देखा और निश्चय कर लिया कि प्रभाकरसिंह मरे नहीं हैं और इलाज करने से बहुत जल्द अच्छे हो जायगे । अब पुन इन्दुमति की आंखों से आंसू की धारा बहने लगी तथा जमना और सरस्वती ने उसे समझाया और फिर मना दिया। इसके बाद सब कोई मिल जुल पर प्रभाकर सिंह को उठा कर घाटी के अन्दर ले गई ओर बंगले के बाहर ढलान मे एक सुन्दर चारपाई पर लेटा कर उन्हे होश में लाने का उद्योग करने लगी।
मुंह पर पेवा और वेदमुश्क पिन्टकन तथा तरलता सुंघाने मे थोडी ही देर में प्रभाकरसिंह चैतन्य हो गए घोर जमना की तरफ देव फर बोले,
’’मैं कहा हूं ?’’
जमना० । आप उस घाटी में है यहां हम दोनो बहिनो तथा इन्दुमति से मुलाकात हुई थी।
प्रभा० । (चारो तरफ देख कर) ठीक है, मगर में यहा कैसे आया?
जमना० । पहले यह बताइये कि अब आपकी तबियत कैसी है?
प्रभा० । मै अच्छा हूं होश में हूं और सब कुछ समान करना चाहता हूं।।