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दूसरा भाग
 

हरदेई० । जी हा उसके लिये प्राप कोई चिन्ता न करें।

प्रभा० । मै तो इसी फिक्र मे लगा हुआ था की पहिले किसी तरह दर्वारा सोलने की तर्कीब मालूम कर लू तव दूसरा काम करूं ।

हरदेई ० । नहीं अव श्राप अपनी कार्रवाई कीजिये, सुरग का दर्वाजा सोलना पोर चन्द करना पर मेरे लिये कोई कठिन काम नहीं है।

प्रभा० । ( अपने जेब में से एक पुडिया निकाल कर और हरदेई के हाथ में देकर ) अच्छा तो अब तुम इस दवा को भोजन के शिमो पदार्थ में मिला देने का उद्योग करो फिर मैं समझ लूगा ।

हरदेई० । अव इन्दुमति या जाय तो मै जाऊं।

प्रभा० । हा मेरो भी यही राय है। थोडी देर बाद चाँदी की रकाबी मे कुछ मेवा लिए हए इन्दुमति वहा श्रा पहुंचो, उसके साथ एक लौडी चांदी के लोटे में जल और एक गिलास लिए हुए थी।

प्रभाकरसिंह ने मेवा रााफर जरा पोया प्रार एसो वीर गे हरदेई किसी काम के बहाने से उठ कर कमरे के बाहर चली गई।

पन्द्रहवां बयान

रात आधी से कुछ ज्यादे जा चुकी है । बंगले के अन्दर जितने आदमी है सभी बेहोशी की नींद सो रहे है क्योकि हरदेई ने जो बेहोशी की दवा खाने को वस्तुप्री में मिला दी थी उसके सदर से सभी आदमी (उस अन्न के खाने से ) से वेहोश हो रहे है। हरदेई एक विश्वासो लौटी थी और जमना तथा सरम्बसी उने जा जान से मानती थी इसलिए कोई आदमी उन पर शक नहीं कर सकता था, परन्तु इन समय हमारे पाठक घसूची समझ गये होंगे कि यर हरदेई नही है वास्क जिस तरह भूतनाथ प्रभाकरसिंह का रुप धारण किए हुए है उसी तरह भूनाथ पा शागिर्द रामदास हरदेई की मूरत में काम कर रहा है, असली हरदेई को तो यह गिरफ्तार करके ले