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भूतनाथ
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गया था। और सभो की तरह नकली प्रभाकर सिंह भी अपनी चारपाई पर बेहोश पडे हुए हैं । हरदेई० ने आकर प्रभाकर सिंह को लखलखा सुध'या और जब वे होश में आ गए तो उनसे कहा, "अब उठिए काम करने का समय या गया।"

प्रभा०। कितनी रात जा चुकी है ?

हरदेई० । भाधी से ज्यादे ।

प्रभा० । सभो के साथ मुझे भी वही अन्न खाना पडा, यद्यपि मैने बहुत कम भोजन किया था तथापि बेहोशी का असर बहुत ज्यादा रहा।

इतना कह कर प्रभाकरसिंह उठ खडे हुए मोर सब तरफ घूम कर देखने लगे कि कहा कोन सोया हुमा है । जमना सरस्वती और इन्दुमति तो उसी कमरे मे फर्श के ऊपर सोई हुई थी जिसमें प्रभाकरसिंह थे और बाकी की सब लोहियां तथा ऐयार दूसरे कमरे में पड़े हुए थे।

प्रभाकरसिंह ने जमना पोर सरस्वती की तरफ देख कर हरदेई से कहा, "पहिले तो मुझे यह देखना है कि इन लोगो ने किस ढग पर अपना चेहरा रगाहमा है।"

हरदेई० । मै आपसे कह चुका हू कि इन लोगो ने एक प्रकार की झिल्ली चेहरे पर चढाई हुई है जिस पर पानी का असर नहीं होता।

प्रभा० । ( जमना भोर सरस्वती के चेहरे पर से झिल्ली उतार कर) बेशक यह एक अनूठो चीज है, इसे मैं अपने पास रखखू गा ।

हरदेई० । (अथवा रामदास) बेशक यह चीज रखने योग्य है ।

प्रभा० । इन लोगो ने भी बडा ही उत्पात मचा रखा था,माज इनकी चालबाजियो का अन्त हुआ । अब इन्हे शीघ्र ही दुनिया से उठा देना चाहिए नही तो एक न एक दिन इन दोनो की बदौलत वडा ही अनर्थ हो जायगा और में किसी को अपना मुह दिखाने लायक न रहूगा (कुछ सोच कर ) मगर मुमसे इनके गले पर छुरी न चलाई जायेगी,यद्यपि मै इनको जान लेने के लिए तैयार हूँ मगर लाचारो से।