पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२३६

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दूसरा भाग हरदेई । यदि दया पाती हो तो इन्हें किसी कूए में ढकेल कर निश्चिन्त हो जाइये । इस जंगल के पोछे की तरफ पहाडी के कुछ ऊपर चढ के एफ कूप्रा है जो इस काम के लिए बहुत ही मुनासिब होगा । मैं प्रच्छी तरह जान कर चुका है कि वह बहुत गहरा घोर अन्धेरा है, उसमें गया हुप्रा प्रादमी फिर नहीं निकल सकता। प्रभा० । प्रच्छी बात है, दोनो को उसी कुएं में ले चल कर डाल दो, मगर इन्दुमति पो मै अपने घर प्रर्यात् लामाघाटो में ले जाऊंगा याकि इसपी जुबानो बहुत सी बातो का पता लगाना है । हरदेई ० 1 में इस राय को पसन्द नहीं करता, मैं इन्दुपति को भी उसी फूए' में पहनाना मुनासिब समझना है । प्रभा० । (कुछ सोच कर) प्रच्छा सैर इसे भी उमी में दाखिल करो। इतना कह कर नरलो प्रभारमिह ने जमना को पौर गमदास ने सर. स्वती को उठा कर पीठ पर लाद लिया और उस कए पर चले गये जिसको पता रामदास ने दिया था। वह फूमा बगले के पश्चिम तरफ पहाडो के कुछ ऊपर चढ कर परता था। कूपा वहन प्रशस्त और गहरा था मगर :मया मुह इतना छापा कि यहां के रहने वालो ने एक मामलो पत्थर को नट्टान में उसे टाक करा था। पदानित रामदाम को इसका पता गच्छी तरह लग चुगा पामोलिए यह नाली प्रभाकरसिंह को निर हुए वह्नत मल्द वहा जा पहुंचा । जनना गौर मरम्पती को जमीन पर न दोनो ने मिल कर उस कुए का मुह गोला और फिर उन दोनो औरतों को एक एक गरके उसके अन्दर फेंक दिया । एपमोम । समग । प्रमोस । भूतनाय को हम दुष्कर्म का पया नतीज भागना पडेगा इन पर उगने कुछ भी ध्यान न दिया । दोनो वैचारियो यो ए मेहदेल पर भूतनाथ ने ध्यान देकर और फान नगा कर सुनाफ नीचे गिरने की प्रावान पाती है या नही, मगर किसी तरह की पावाज उसके कान में न गई जिमे उसे वडा ही प्राश्चर्य हमा। 1