पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२३९

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भूतनाथ विमला इन्दुमति मोर रामदास का भी वहाँ नामोनिशान न था। कमर परावर मुलायम मोर गुदगुदी घास कूए की तह में जमी हुई थी जिस पर खडे होकर भूतनाथ ने सोचा कि कोई प्रादमी ऊपर से इस घास पर गिर फर चुटोला नहीं हो सकता, मतएव निश्चय है कि कला बिमला और इन्दुमति मरी न होंगी, मगर माश्चर्य है कि यहां उनमें से एक भी नजर मही प्राती मोर न रामदास ही का कुछ पमा है। उस कुएं की तह में बिल्कुल ही अन्धकार था इसलिये अच्छी तरह देखने दूदने मोर नाच करने के लिए भूतनाथ ने अपने ऐयारी के बटुए में से मोमबत्ती निकाल कर रोशनी की मोर बडे गौर से चारो तरफ देखने लगा। मन्दर से वह कूमा बहुत चौडा था और उसकी दीवारें संगीन थी। जब कोई भादमी वहा नजर न भाया तब भूतनाप ने उस पास के अन्दर टटोलना पोर ढूंढना शुरू किया मगर इससे भी कोई काम न चला, हां दो बातें जरूर ताज्जुब की वहां दिखाई पड़ीं । एक ता उस कूए की दीवार में से ( चारो तरफ से ) थोडा थोडा पानी टपक कर तह में भा रहा था जिससे सिर्फ वहाँ की धास जो एक अजीब किस्म को थी बरावर सर और ताजा बनी रहती पो, दूसरे छोटे छोटे दो दाजे भी दीवार में दिखाई दिये जो एक दूसरे के मुकाबले में थे। भूतनाथ बड़े हो पाश्चर्य से उन दोनों दर्वाजों को देख रहा था क्योंकि जब वह कूए में इधर उधर घूमता वो कभी कोई दर्वाजा (उन दोनों में से। बद हो जाता पोर कोई खुल जाता । मगर जब वह कुछ देर तक एक ही जगह पर स्थिर माव से खडा रह जाता तव वे दर्वाजा भी ज्यों के त्यो एक ही ढंग पर कायम रह पाते अर्थात् जो खुल जाता वह खुला ही रह जाता मोर जो वन्द होता वह बन्द ही रह जाता। मस्तु भूतनाप ने समझा कि इन दर्वाजो के खुलने मौर बन्द होने के लिये वहा को जमीन ही में कदाचित् कोई कमानी लगी हुई है। वह बहुत देर तक इधर उवर घूम घूम कर इन दर्वाजो के खुलने मोर वन्द होने का तमाशा देखता रहा।