पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२५०

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तीसरा हिस्सा बोज कर उन्हें तकलोफ देगा। मगर जो हो उन सभी को योजना ही पड़ा। उधर बार्दू साहब उस कू ए के पास ही एक झाडो मे छिपे हुए सब देस सुन रहे थे और डर के मारे उनका तमाम बदन काप रहा था। जब उन्होंने देखा कि वह राक्षस सभी को लिए हुए उनकी खोज में कूए के नीचे उतरा है तव तो वह एक दम घबदा उठे और उनके मुंह से हजार कोशिश कर के रोकने पर भी एक चीख को अावाज निकल ही पड़ी। आवाज सुनते ही वह मुसाफिर समझ गया कि इसी काटी के अन्दर बाबू माहब छिपे हुए हैं, झपट कर वहा जा पहुंचा और भाटी के अन्दर से हाथ पकड के वायू साहब को बाहर निकाला । मालूम होता था कि वाबू साहब को पूरा समय जर्डया युसार चड पाया है। उनका तमाम बदन तेजी के माघ काप रहा था। बाबू साहव जल्दी से मुसाफिर के पैरो पर गिर पड़े और ग्रामू बहाते हुए बोले, "ईश्वर के लिए मुझे माफ करो, मैं बडा ही गरीब ह किसी के भन्ने बुरे से मुझे बुद्ध नरोकार नहीं, मैंने आपका कुछ भी नहीं विगाता है।" मसाफिर० । डरो मत, मैने तुम्हें किमी बुरी नीयत ने नहीं का है, ये लोग तुम्हें यहा जंगल में छोड कर भागे जाते थे इसलिए मैंने सभी को रोक लिया और कहा कि पपने नायी को सोज कर अपने गाय लिये जानो। अब तुम वेतौफ होकर अपने दोस्तो के माथ अपनी प्यारी नागर के पान गले जायो घोर मुझसे बिलकुल मत डरो। मुगा फर की बातो मे दार साहब को कुछ टाटम ई वे मम्हल कर उठ सहुए और मुसाफिर से कुछ पहा ही चाहते थे कि पास की दूसरी माने में ने एक दूसरा प्रादमी निकल कर पटता हुया इन सभी के पान न पहुंगा पौर मुसाफिर की तरफ देश के बोला, "तुम क्यो उस वेचारे मूधे और डरपोक प्रादमी गो तग कर रहे हो, नहीं जानते कि तुम्हारा गुर चन्द्रशेखर उनी जगह छिपा हुया तुम्हारी शैतानी का तमाशा दे रहा है !"