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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२४९

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भूतनाथ सुन्दर सलोने बाबू साहब कहा चने गये जिन पर वीवी नागर आशिक हो एक० । न मालूम कहा चला गया, ऐसा भग्गू आदमी दूसरा० ० । जाने दो, अगर भाग गया तो जहन्नुम में जाय, उसी के सवव से तो हम लोग तकलीफ उठाते हैं। मुसाफिर० । नहीं नही, भागो मत, अपने साथी को पाने दो बल्कि खोजो कि वह कहा चला गया है। यह कोई लमनसी की बात नहीं है कि उसे इस तरह छोड कर सब कोई चले जाओ, हम तुम लोगो को कभी न जाने देंगे और खास कर के तुम्हारे सुन्दर सलोने से तो जरूर ही बात- चोत करेंगे। मुसाफिर की वातों ने उन लोगो को और भी परेशान कर दिया उसका रोव इन सभो पर ऐसा छा गया था कि उसकी तरफ भाख उठा। कर देख नहीं सकते थे और उसे आदमी नहीं बल्कि देवता या राक्षस समझने लग गये थे, अस्तु उसका रोकना इन लोगो को और भी बुरा मालूम हुया और समो ने डरते हुए हाय जोड कर कहा, "वस अव कृपा कीजिए और हम लोगो को जाने दीजिए।" मुमाफिर० । नही नही यह कभी न होगा, पहिले तुम अपने साथी को तो खोजो। एक० । अव हम उसे कहा खोजें ? मुसा० । चलो हम भी तुम लोगो के साथ मिल कर उसे खोजें । वह कही दूर न गया होगा इसी जगह किसी झाडी में छिपा होगा। तुम लोग डरो मत, अब हमारी तरफ से तुम्हें किसी तरह की तकलीफ न पहुंचेगी। यद्यपि मुसाफिर ने उन लोगो को बहुत दिलासा दिया और समझाया मगर उन लोगो का जी ठिकाने न हुग्रा और डर उनके दिल से न गया वल्कि इस बात का ख्याल हुअा कि यह मुसाफिर वावू साहब को खोजने के लिए जिद्द करता है तो इसमें कोई भेद जरूर है, वेशक यह वावू साहव को