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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२५५

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भूतनाथ १२ - 3 नागर वनिस्वत मेरे इस आदमो को बहुत प्यार करती है। खूटियो पर कपडे रख कर भूतनाथ वावू साहब के पास बैठ गया और बोला, "भला मैने आपको क्या तकलीफ दी है जो आप मुझसे इतना डरते है ? एक ऐयाश और खुदल आदमी को इतना डरपोक न होना चाहिए। आप मुझे शायद पहिचानते नही, मेरा नाम गदाधरसिंह है, आपने अगर मुझे देखा नहीं तो नाम जरूर ही सुना होगा।" वावू साहब० । (आश्चर्य और डर के साथ ) हाँ मैने आपका नाम सुना है और अच्छी तरह सुना है । नागर० । ( मुस्कुराती हुई, वाबू साहव से ) आपके तो अब ये गहरे रिश्तेदार हो गये है फिर भी आप इन्हे न पहिचानेंगे। वाबू साहब० । (कुछ शर्माते हुए ) हाँ हाँ मै बखूबी जानता हू मगर पहिचानता नही था, अफसोस की बात है कि इतने दिनो तक इनसे कभी मुलाकात नहीं हुई। नागर० । ( वावृ साहव मे ) आपसे इनमे कुछ नातेदारी भी तो है ? वाबू माहब० । हाँ, मेरो मोमेरी वहिन रामदेई* इनके साथ व्याही है । आज अग मुझे इस बात की खबर होतो कि पाप ही मेरे वहनोई है तो मैं उस कूएँ पर इतना परेशान न होता बल्कि खुशी के साथ मुलाकात होती । ( भूतनाथ से ) हाँ यह तो वताइए कि वह चन्द्रशेखर कौन था जिसके खीफ से श्राप परेशान हो गये थे। गदावरसिंह० । ( कुछ डर और सकोच के साग ) वह मेरा बहुत पुराना दुग्मन है। मेरे हाथ से कई दफे जक उठा चुका और नीचा देख चुका है, अब वह मझमे वदला लेने की धुन में लगा हुआ है । आज बडे वेमौके मिल गया था क्योकि मै वैफिक था और वह हर तरह का सामान लेकर

  • रामदई-नानक की मां, जिसका जिक्र चन्द्रकान्ता सन्तति में श्रा

चुका है।