पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तीसरा हिस्सा ? मेरी खोज मे निकला था। वाबू साहब० । प्राखिर हम लोगो के चले पाने के बाद क्या हुआ श्रापसे भीर उससे कैसी निपटी ? गदाधर० । मै इस मोके को बचा गया और लडता हुआ धोखा देकर निकल भागा ! खैर फिर कभी देखा जायगा, अवकी दफे उस साले को ऐसा छकाऊगा कि वह भी याद करेगा। चन्द्रशेखर का नाम सुन कर नागर चौक पटो और उसके चेहरे की रंगत वदल गई । मालूम होता था कि वह भूतनाथ से कुछ पूछने के लिए उतावली हो रही है मगर वावू माहब के खयाल से चुप है और चाहती है कि किसी तरह वावू साहव यहा से चले जायं तो बात करे । वाबू साहब । (भूतनाथ से) ठीक है वह वेशक यापका दुश्मन है, भाज पाठ दस दिन हुए होगे कि वह मुझसे बरना* के किनारे एकान्त में मिला था। उन समय उसके माथ तीन चार पोरतें भो यो जिनमें से एक का नाम विमला था। गदावर० । (चीक कर) विमला? बावू साहव० । हा विमला, सीर एक मर्द भी उसके नाय था जिसे उसने एक दफे प्रभाकरसिंह के नाम से सम्बोधन किया था। गदाधर० । (घबडा कर) क्या तुम उस समय उनके नामने मौजूद थे ? वायू नाहब० । जी नहीं, मै उन सभी को वहा पाते देस एक झाडी में छिप गया था। गदापर० । तब तो तुमने और भी बहुत सी बातें सुनी होगी। बाबू गाहद० । नहीं, मैं कुछ विशेष वाते न सुन नका, हां इतना जग्र मानून हया कि वह मनोरना मे पीर जमानिया के राजा मे मिलने ना उद्योग कर रहा है। गदावन। (कुछ नोन कर और बाबू साहब की तरफ घिसक कर) + काशी के उत्तर बहती हुई नदी का नाम वरना है। .