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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२५८

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तीसरा हिस्सा .... एक लिफाफा . गदावरसिंह० । सुनिए रामलालजोर, इसमें कोई सन्देह नहो कि प्राप मेरे नातेदार है और इस ख्याल से मुझे अापका मुलाहिजा करना चाहिए मगर ऐसी अवस्था में जब कि आप मुझने झूठ बोलने और मुझे धोखा देने की कोशिश करते है अथवा यो कह सकते है आप मेरे दुश्मन से मिल कर उसके मददगार बनते है तो मैं पापका मुलाहिजा कुछ भी न करूगा । हा यदि पाप मुझन सब कुछ साफ साफ कह दें तो फिर मैं भी .. रामलाल० । (अर्थात् बाबू साहव) ठीक है अव मुझे मालूम हो गया कि उन औरतो ने और प्रभाकरसिंह से आप डरते है, यदि यह बात सच है तो डरपोर पोर कमजोर होने पर भी में प्रापसे डरना पसन्द नही करता रामलाल ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि सोडियो पर से जिसका दर्वाजा इन लोगो के सामने हो था तेजी के साथ एक नकाबपोश आया और भूतनाथ के सामने फेक कर यह कहता हुप्रा वहां से निकल गया वेशक डरने की कोई जरूरत नहीं है, और सास कर ऐसे आदमी से जो पूरा नमकहराम मोर वेईमान है तथा जिसने अपने मालिक और दोस्त दयाराम को अपने हाथ से जख्मी किया था, मगर ईश्वर की कृपा थी कि वह बेचारा बच गया और जमानिया में बैठा हुया भूतनाथ के इस्तकबाल की कोशिश कर रहा है।" इन आवाज ने भूतनाथ को एक दम परेशान कर दिया। उसने लिफाफा सोल कर चिट्टी पटने का इन्तजार न किया और सजर के कब्जे पर हाथ रसता हुना तेजो के माय दाजे पर और फिर सोटियो पर जा पहुचा मगर फिरी यादमो को सूरत उसे दिखाई न पढी। वह घडधडाता हुआ सीढियों पे नीचे उतर पाया और फाटक के बाहर निकलने पर उस नकाबपोश को कुछ दूरी पर जाते हुए देखा । भूतनाथ ने उसका पीछा किया मगर वह गलियों में घूम फिर कर ऐसा गायव हुया कि भूतनाय को उसकी गंध

  • चायू मार का असली नाम रामलाल धा।