पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२६३

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भूतनाथ २० अन्दर जाने वाले का सिर छत के साथ टकराये, अस्तु प्रभाकरसिंह धोरे धीरे टटोलते हुए। इसके अन्दर जाने लगे। जव लगभग दो सौ कदम के चले गये तव उन्हे एक छोटी सी कोठरी मिली जिसके अन्दर जाने के लिए दरवाजे को किस्म से किसी तरह की रुकावट न थी सिर्फ एक चौखट लांघने ही के सवव से कह सकते है कि वे उस कोठरी के अन्दर जा पहुंचे। अधकार के सवव से प्रभाकरसिंह को कुछ दिखाई नहीं देता था इसलिये वे बैठ कर वहा की जमीन हाथ से इस तरह टटोलने लगे मानों किसी खास चीज को ढूढ रहे है ? एक छोटा सा चबूतरा कोठरी के वीचोवीच मिला जो हाथ भर चौडा और इसी कदर लम्बा था । उसके बीच में किसी तरह का खटका था जिसे प्रमाफरसिंह ने दवाया और साथ ही इसके चबूतरे के ऊपर वाला हिस्सा किवाद के पल्ले की तरह खुल गया, मानो वह पत्थर का नही बल्कि किसी धातु या लकड़ो का दना हो। अव प्रभाकरसिंह ने अपने बटुए मे से मोमबत्ती निकाली और इसके वाद चकमक पत्थर निकाल कर रोशनी की। प्रभाकरसिंह ने देखा कि ऊपर का हिस्सा राल जाने से उस चबूतरे के अन्दर नीचे उतरने के लिए सीढिया लगी दिसाई देती है। प्रभाकरसिंह ने रोशनी में उस कोठरी को वडे गौर से देखा । वहा चारो तरफ दीवार मे चार प्राले ( नाक ) थे जिनमे से मिर्फ सामने वाले एक पाले मे वनावटी गुलाव का एक पेड बना हुआ थ जिसमे हिसाव कलि या लगी हुई थी और सिर्फ चार फूल खिले थे वाकी के तीनो पाले साली थे। प्रभाकरसिंह ने उम गुलाब के पेड और फूलो को वडे गौर से देख और यह जानने के लिये कि वह पेड किस चीज का बना हुमा है उसे हा से अच्छी तरह टटोला । मालूम हुआ कि वह पत्थर या किसी और मजबू चीज का बना हुआ है। प्रभाकरमिह उन खिले हुए चार फूलों को देख कर बहुत ही खुश