२१ तीसरा हिस्सा .. 1 और इस तरह धीरे धोरे बुबुदाने लगे जैसे कोई अपने मन से दिल खोल कर बातें करता हो। उन्होंने ताज्जुब के मायकहा "है, यह चार फूल कैसे ! सर मेरा परिश्रम तो सुफल हुप्रा चाहता है । इन्दवनी का त्याल ठोक निकला कि वे तीनो औरतें (जमना सरस्वती और इन्दु) जरूर उस तिलिस्म के अन्दर चलो गई होगी। अव इन सिले फूलो को देख कर मुझे भी विश्वास होता है कि उन तीनो से तिलिस्म में मुलाकात होगी और मैं उन्हे खोज निकालू गा, मगर इन्द्रदेवजी ने कहा था कि जितने आदमो इस तिलिस्म के अन्दर जायगे इस पेड के उतने हो फूल खिले दिसाई देगे। इसके अतिरिक्त उस कागज में भी ऐसा ही लिखा है, मगर अव जो देखता हू तो तीन की जगह चार फल खिले हुए है, अस्तु यह चौथा आदमी इस तिलिम्म मे कौन जा पहुँचा ? इस बात का मुझे विश्वास नहीं होता कि किसी लीडो को भी वे तीनो अपने साथ ले गई होगी क्योकि ऐसा करने के लिए इन्द्रदेवजी ने उन्हें सरत मनाही कर दी थी। या सम्भव है कि किसी विशेप कारण से वे किसी लौंडी को अपने साथ ले भो गई हो, सर जो होगा देखा जायगा मगर यदि ऐसा किया तो यह काम उन्होने अच्छा नहीं किया। इसी तरह की बहुत सी वातें वे देर तक सोचते रहे, साथ ही इसके इस बात पर भी गौर करते रहे कि उन तीनो को तिलिम्म के अन्दर जाने को जमरती प्या पदी। प्रभाकरसिंह वेसटके उन मोटियो के नोचे उतर गये। नीचे उतर जाने के बाद उन्हें पुन एक सुरग मिली जिसमे तीम या चालीम हाय से ज्याद जाना न पा। जब वे उस मुरग को सतम कर चुके तब उन्हें रोशनी दिसाई दो तथा मुरग के बाहर निकलने पर एक छोटा सा बाग और कुछ इमारतो पर उनकी निगाह पसे। पासमान पर निगाह करने मेन्याल हुग्रा कि दोपहर रन चुकी है और दिन या तीसरा पर वीत रहा है। SV बाग में गजान बारहदगे कमरे दालान चबूतरे या इमो तरह की इमारलो के अतिरिक्त यौर कुछ भी न या प्रार्यात् फूल के अच्छे दरस्त
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