भूतनाथ | २० |
हाथ मे रोशनी थी नखरे के साथ हाथ मे मोमबत्ती गिरा दी जिससे अधकार हो गया । उसने यही जाहिर किया कि यह वात धोखे मे उससे हो गई । इसके बाद उस औरत ने इनका हाथ भी छोड दिया। प्रभाकरसिंह अटक कर कुछ सोचने लगे और बोले-"जो हुआ सो हुअा अव रोशनी करो तो मै तुम्हारे साथ भागे वढूगा नहीं तो पीछे की तरफ मुड जाऊंगा।" मगर उनकी इस बात का किसी ने भी जवाव न दिया । पाश्चर्य के साथ प्रभाकरसिंह ने पुन पुकारा मगर फिर जवाब न मिला, मानो वहाँ कोई था हो नही।
आश्चर्य और चिंता के शिकार प्रभाकरसिंह कुछ देर तक खडे सोचने के वाद अफसोस करते हुए पोछे की तरफ लौटे मगर अपने ठिकाने न पहुँच सके । पाठ ही दस कदम पीछे हटे थे कि दीवार से टकरा कर खडे हो गए और सोचने लगे, "हैं, यह क्या मामला है । अभी अभी तो हम लोग इधर से आ रहे हैं, फिर यह दीवार कैसी ? रास्ता क्योकर बद हो गया | क्या अब इस तरफ का रास्ता वद ही हो गया । क्या अव हम वहा न पहुंच सकेंगे जहा इन्दुमति को लिए हुए भूतनाय गया है " इत्यादि ।
वास्तव मे पीछे फिरने का रास्ता बन्द हो गया था मगर अन्धेरे मे इस वात का पता नही लग सकता था कि यह कोई दीवार वीच में पा पडी है या किसी तरह के तले या दरवाजे ने वगल से निकल कर रास्ता बन्द कर दिया है अथवा क्या है | जो हो प्रभाकरसिंह को निश्चय हो गया कि अब पीछे की तरफ लौटना असम्भव है अस्तु यही अच्छा होगा कि आगे की तरफ बढे, शायद कही उजाले की सूरत दिखाई दे तब जान वचे । श्राह । मै इन औरतो को ऐसा नहीं समझता था और इस बात का स्वप्न में भी गुमान नहीं होता था कि ये मेरे साथ दगा करेंगी।
लाचार प्रभाकरसिंह अन्धेरे में अपने दोनो हाथो को फैलाकर टटोलते हुए भागे की तरफ बटे मगर वहुत धीरे धीरे जाने लगे जिसमें किसी तरह का घोना न हो । राम्ता पेत्रीला और ऊ चा नीचा था तथा आगे की तरफ से तग भी होता जाता था। अढाई तीन सौ कदम जाने के बाद रास्ता इतना