पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूतनाथ रास्ता ही दिखाई दिया । चौथे दिन भूख से वैचैन होकर मैं इसी जगल मे घूम रही थी कि यकायक इन्दुमति कुछ दूरी पर दिखाई पड़ी जो कि आपके गले में हाथ डाले हुए धीरे धीरे पूरब की तरफ जा रही थी। मैं नही कह सकती कि वह वास्तव मे पाप ही के गले में हाथ डाले हुई थी या किसी दूसरे ऐयार के गले मे जो आपकी सूरत वना हुभा था। उसी के पीछे मैने कला और विमला को भी जाते हुए देखा। मै खुशी खुशी लपकतो उनको तरफ बढ़ो मगर नतीजा कुछ भी न निकला। देखते ही देखते इसी जगल और झाडियो मे घूम फिर वे सव की सव न जाने कहा गायव हो गई , तब से आज तक कई दिन हुए मैं उनकी खोज में परेशान हूँ, अन्त मे भूख के मारे बदहवास होकर इसी जगह गिर पड़ी और कई पहर तक मुझे तनोवदन की कुछ भी सुध न रही, जब होश में आई तव अापसे मुलाकात हुई । वस यही तो मुख्तसर हाल है । हरदेई की बात सुन कर प्रभाकरसिंह के तो होश उड गये। वे ऐसे वेसुध हो गये कि उन्हे तनोवदन की सुव विल्कुल ही जाती रही। थोडी देर तक तो ऐमा मालूम होता रहा कि वे प्रभाकरसिंह नही बल्कि पत्थर की कोई मूरत है, इसके बाद उन्होंने एक लम्बी सास लो और वडे गौर से हरदेई के चेहरे की तरफ देखने लगे। कई क्षण वाद उन्होने सिर नीचा कर लिया और किसी गहरे चिन्ता-सागर में डुबकिया लगाने लगे। हरदेई मन ही मन प्रसन्न होकर उनके चेहरे की तरफ देखने लगी जिसका रंग थोडी थोटी देर पर गिरगिट के रग की तरह वरावर वदल रहा था। प्रभाकरसिंह के चेहरे पर कभी तो क्रोव कभी दु ख कभी चिन्ता कभी घवराहट और कभी घृणा की निशानी दिखलाई देने लगी। आह, प्रभाकर- सिंह के जिस हृदय में इन्दुमति का अगाव प्रेम भरा हुआ था उसमें इस ममय भयानक रम का संचार हो रहा है । जो वीर हृदय सदैव करुण रस ने परिपूरित रहता था वह क्षण मात्र के लिये अद्भुत रस का स्वाद लेकर रोट और तत्पश्चात् वीभत्स रस की इच्छा कर रहा है। जिस हृदय में