पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२७२

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२६ तीसरा हिस्सा लिए हुए . है, एक न एक दिन इसका नतीजा बहुत ही बुरा निकलेगा, मगर वे दोनो इस बात का कुछ ख्याल नहीं करती थी और मुझे यह कह कर टाल दिया करती थी कि खैर जो कुछ हुमा सो हुमा अव ऐसा न होगा । मगर मुझे इस बात की कुछ भी खवर न थी कि मेरे रोक टोक करने से उनके दिल मे रंज वैठता जाता है। मैंने अपने काम में और भी कई लौडियो को शरीक कर लिया मगर इसका नतीजा मेरे लिए अच्छा न निकला। एक दिन वह प्रादमी जो आपकी सूरत वना हुअा था जब उस घाटी में पाया तो उसके साथ और भी दस बारह प्रादमो पाए। जब वे लोग कला विमला और इन्दुमति से मिले तो उनका रग ढंग देख कर मै दर गई और एक किनारे हट कर उनका तमाशा देखने लगी। थोटी देर के वाद जव संध्या हुई तव कला विमला और इन्दुमति उन सभी को माय बंगले के अन्दर चली गई अस्तु इसके बाद क्या हुया मो मै कुछ भी न जान सकी, लाचार मैं अपनी हमजोलियो के साथ जा मिली पोर भोजन इत्यादि की सामग्री जुटाने के काम में लगी । पहर रात बीत जाने के बाद जब भोजन तैयार हुग्रा तव सभी ने मिल जुल कर भोजन किया, पश्चात् हम लोगो ने भो साना बाया मगर भोजन करने के थोडी देर बाद हम लोगो का सर घूमने लगा जिमसे निश्चय हो गया कि आज के भोजन में वेहोशी की दवा मिलाई गई है। पर जो हो अाधी रात जाते जाते तक हम मव की सब वेहोश होकर दीन दुनिया को भूल गई। प्रात काल जब मेरी अखि खुली तो मैने अपने नापको इसी स्थान पर खडे हुए पाया। घबडा कर उठ बैठी श्रीर पारवर्य के साथ चारो तरफ देराने लगी, उस समय मेरे सर में वैहिसाव दर्द हो हा था। तीन दिन और रात में घवदाई हुई इस जंगल में पोर ( हाल का इशारा फरके ) इस पास पाली इमारत और दालान में घूमती रही मगर न तो किसी से मुलाकात हुई और न चहा से निकल भागने के लिए कोई