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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२८२

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३६ तीसरा हिस्सा आधे घण्टे तक तेजी के साथ चले जाने के बाद गाडी एक ठिकाने पहुच कर रुक गई । प्रभाकरसिंह ने पाखें खोल कर देखा तो उजाला मालूम हुआ। वे गाडी से नीचे उतर पडे और गौर से चारो तरफ देखने लगे। वह स्थान ठीक उसी तरह का था जैसा कि कला और विमला के रहने का स्थान था और इसे देखते ही प्रभाकरसिंह को शक हो गया कि हम पुन. उसी ठिकाने पहुँच गये जहा कला और विमला से मुलाकात हुई थी परन्तु वहा की जमीन पर पहुच कर उनका खयाल बदल गया और वे पुन दूसरी निगाह से उस स्थान को देखने लगे। यहा भी ठीक उसी ढग का एक वगला बना हुआ था जैसा कि कला और विमला के रहने वाली घाटीमें था मगर इसके पास मौलसिरी (मालश्री) के पेड न थे । दक्षिण तरफ पहाड के ऊपर चढ जाने के लिए सीढिया दिखाई दे रही थी और जहा पर वह सीढिया खत्म हुई थी वहा एक सुन्दर मन्दिर बना हुआ था जिसके ऊपर का सुनहरा शिखर ध्वजा और पिशूल सूर्य की रोशनी पड़ने से बडी तेजी के साथ चमक रहा था । जय प्रभाकरसिंह गाडी से नीचे उतर पड़े तो वह गाडी पीछे को तरफ उसी तेजी के साथ चली गई जिस तेजी के साथ यहा पाई थी। प्रभाकरसिंह चारो तरफ अच्छी तरह देखने के बाद दक्षिण तरफ वाली 'पहाडी के नीचे चले गये और सीढियां चढ़ने लगे । जव तमाम सीढ़ियां खतम कर चुके तव उस मदिर के अंदर जाने वाला फाटक मिला अम्नु प्रभाकरसिंह उस फाटक के अन्दर चले गये । इस पहाडी के ऊपर चढ़ने वाला इन मन्दिर के अन्दर लाने के मिवाय और कही भी नहीं जानता था क्योकि मन्दिर के चारो तरफ बहुत दूर तक फैली हुई क ची ऊंची जालीदार चारदीवारी थी जिसके उत्तरतरफ निर्फ एक फाटक था जो इन सीढियो के नाप मिला हुआ था अर्थात् इस सिल- सिले को कई सीढिया . फाटक के अन्दर तक चली गई थी। तीदियो के अगल बगल से भी कोई रास्ता या मौका ऐसा न था जिसे लाप या कूद