पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२८९

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भूतनाथ ४८ श्याम० । जी हा, उसी में मेरा भाई भी तो . भूत० । वेशक मुझे रामदास के लिए बडी चिन्ता लगी हुई है मगर जिस अवस्था में मैं रामदास को देख कर लोटा है उसे विचारने से खयाल होता है कि जमना सरस्वती और इन्दुमति जीती बच गई हो तो कोई ताज्जुव नहीं। श्याम० । सम्भव है कि ऐसा ही हुआ हो, परन्तु जीती बच जाने पर भी मै समझता है कि वे सब कुछ दिन बाद भूख और प्यास को तकलीफ से मर गई होगी। भूत० । नही ऐसा नही हुआ, अभी कल हो मैंने काशी मे सुना है कि वे तीनों प्रभाकरसिंह के साथ बरना नदी के किनारे घूमती फिरती देखी गई है। श्याम० । (चौंक कर ) है ! अगर ऐसी बात है तो उन लोगो को तरह मेरा भाई भी बच कर निकल भागा होगा । भूत० । होना तो ऐसा ही चाहिए था मगर रामदास अभी तक मुझसे नहीं मिला। श्याम० । तो आपने काशी में किसकी जुवानो ऐसा सुना था ? इसके जवाब में भूतनाथ ने बाबू साहव, नागर तथा चन्द्रशेखर का कुछ हाल वयान किया और कहा । भूत० । जममा सरस्वती और इन्दुमति के विषय में मेरा खयाल है कि रामलाल (वावू साहव) भो कुछ जानता होगा, मगर उस समय डाट उपट वताने पर भी उसने मुझसे कुछ नहीं कहा। श्याम० । अगर आप प्राज्ञा दें और बुरा न मानें क्योकि वह आपका साला है तो मैं उसे अपने फन्दे में फसाकर असल भेद का पता लगा लू । मुझे विश्वास है कि अगर जमना और सरस्वती छूट कर भर गई है तो मेरा भाई भी उस प्राफत से जरूर वच गया होगा। इतने में भूतनाथ की निगाह मैदान की तरफ ना पडी, एक आदमी को