पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२९१

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भूतनाथ yo ? लती हुई देखी गई हैं ? राम० । कब देखो गई है? भूत० । आज आठ दस दिन हुए होगे। राम० । और उन्हें देखा किसने ? भूत० । मेरे साले रामलाल ने । राम । झूठ, बिल्कुल झूठ । अगर आपने स्वयं अपनो आखो से देखा होता तव भी मैं न मानता। भूत० । सो क्यो? राम० । अभी चौबीस घटे भी नही हुए होगे कि मैं उन्हें तिलिस्म के अन्दर फसी हुई छोड कर पाया है। भूत० 1० 1 किस तिलिस्म में ? राम ०। उसी तिलिस्म में, जिस कुए में आपने उन तीनो को फेंक दिया था वह उसी घाटी वाले तिलिस्म का एक रास्ता है। उसके अन्दर गया हुमा प्रादमो मरता नहीं बल्कि तिलिस्म के अन्दर फस जाता है, यही सवव है कि उन लोगो के साथ ही मैं भी उस तिलिस्म में जा फसा। कुछ दिन वाद प्रभाकरसिंह उन तीनो की खोज में उस तिलिस्म के अन्दर गये और वहा एकाएक मुझपे मुलाकात हो गई। मुझे देख कर वे घोखे में पड गये क्योकि ईश्वर की प्रेरणा से मैं उस समय भी हरदेई की सूरत में था । प्रभाकरसिंह ने मुझसे कई तरह के सवाल किये और मैने उन्हे खूब ही धोखे में डाला । उनके पास एक छोटी सी किताव थी जिसमे उस तिलिस्म का हाल लिखा हुआ था। उसी किताब की मदद से वे तिलिस्म के अन्दर गये थे। मैंने धोखा देकर वह किताव उनकी जेब में से निकाल लो और उसी की मदद से मुझे छुटकारा मिला। तिलिस्म से निकलते ही मैं सीधा प्रापसे मिलने के लिए इस तरफ रवाना हुमापौर उन सभों को तिलिस्म के अन्दर ही छोड दिया । (वटुए में से किताव निकाल कर और भूतनाथ के हाथ में देकर) देखिये यही वह तिलिस्मी किताव है, अब आप इसकी मदद से