पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२९२

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तीसरा हिस्सा . ? बखूबी उस तिलिस्म के अन्दर जा सकते है । भूव । (किताव देख कर और दो चार पन्ने उलट पुलट कर राम- दास की पीठ ठोंकता हुआ) शावाश, शाबाश, तुमने वह काम किया जो आज मेरे किए भी कदाचित् नही हो सकता था? वाह वाह वाह ! प्रव मेरे बरावर कौन हो सकता है ? अच्छा अव तुम हमारे साथ इस खोह के अन्दर चलो और कुछ खा पीकर निश्चिन्त होने के बाद मुझसे खुलासे तौर पर कहो कि उस कुएं में जाने के बाद क्या हुअा। नि संदेह वडा काम किया, तुम्हारी जितनी तारीफ की जाय थोडी है । अच्छा यह तो बताओ कि वह तिलिस्मी किताव प्रभाकरसिंह को कहा से मिली, क्या इस बात का भी कुछ पता लगा राम० । इसके विषय में में कुछ भी नही जानता। भूत० । खैर इसके जाच करने को कुछ विशेष जरूरत भी नहीं है। राम० । म समझता है कि अब आप उस तिलिस्म के अन्दर जरूर जायगे और जमना और सरस्वती तथा इन्दुमति को अपने कब्जे में करेंगे। भूत० 1 जरूर, क्या इसमें भी कोई शक है । अभी घटे डेढ घंटे में म और तुम यहा से रवाना हो जायंगे और आधी रात बीतने के पहिले हो वहा जा पहुचेंगे। अब तो हम लोग पास आ गये है सिर्फ तीन चार घंटे का ही तो रास्ता है। प्राज के पहिले जमना और सरस्वती का इतना डर न था जितना अव उनके स्यालसे में काप उठता है क्योकि पहले तो सिवाय दयाराम के मारने के और किसी तरह का इल्जाम वे मुझ पर नहीं लगा मकती थी और उस बात का कुछ सबूत मिल भी नहीं सकता था क्योकि मने ऐसा किया ही नहीं, परन्तु पर तो वे लोग कई तरह का इल्जाम मुझ पर लगा सपाती हैं और वेशक इधर मैने उन सभों के साप वही वडी वुरा. श्यां भी की है, ऐसी अवस्था में उनका बच जाना मेरे लिये बडा हो अनर्य- कारक होगा प्रस्तु जिस तरह हो सकेगा में जमना सरस्वती इन्दुमति प्रभा- करसिंह और गुलाबसिंह को भी जान से मार कर बखेड तं करंगा । हा .