पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३०

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३३ पहिला हिस्सा

उस पेड़ के नीचे पाए तब उसने हाथ के इशारे से उन्हें भाग जाने को कहा जिसके जवाब में प्रभाकरसिंह ने कहा, "तुम इस बात का गुमान भी न करो कि तुम्हारा हाल जाने विना मै यहा से चला जाऊ गा।"

औरत० । (अपने माथे पर हाथ रख कर) वात तो यह है कि आप अव यहा से जा नही सकते और न पापको निकल जाने का रास्ता ही मिल सकता है।

प्रभाकर० । तुम्हारे इस कहने से तो निश्चय होता है कि तुम्हारी जुवानी मुझे यहा का सच्चा सच्चा हाल मालूम हो जायगा और मै अपने दुश्मनो से बदला ले सकूगा।

औरत० । नही, क्योकि एक तो मुझे यहा का पूरा पूरा हाल मालूम नही, दूसरे अगर कुछ मालूम भी है तो उसके कहने का मौका मिलना कठिन है, क्योकि अगर कुछ कहने की कोशिश करूगी तो मेरी ही तरह आप भी कैद कर लिए जायगे।

प्रभा० । तो क्या तुम कैदी हो ?

औरत० । (प्राचल मे पासू पोछ कर) जी हा ॥

प्रभा० । तुम्हें यहा कौन ने पाया ?

औरत० । मेरी बदकिस्मती ।

प्रभा० । तुम्हारा क्या नाम है ?

प्रोरत० । तारा ।

प्रभा० । (ताज्जुब मे) तुम्हारे वाप का क्या नाम है ।

औरत० । (रा कर) वही जो आपको इन्दुमति के वाप का नाम है !! अफसोस । प्रापने मुझे अभी तक नहीं पहिचाना ।।

इतना कह के वह और भी खुल कर रोने लगी सिने प्रभाकरसिंह का दिल बेनन हो गया और उन्होंने पहिचान लिया कि यह बेशक उनकी साली है। वह चाहते थे गि पेट पर नः कर उसे नीचे उतारें और अच्छी तरह बात करें मगर इसी बीच में कई प्रादमियों ने उन्हें आपर घेर लिया।

भू०१-३