भूतनाथ | ३४ |
छोटे पाठवगले के दर्वाजे पर पहरा देने वाले दोनो नौजवान लडको ने प्रभाकसिंह को जब उस औरत से बातचीत करते देखा तव तेजी के साथ वहा से चले गए और थोड़ी ही देर में कई आदमियों ने पाकर उनको घेर लिया।
सन्ध्या का समय था जब नकली प्रभाकरसिंह इन्दुमति को बहका कर और धोखा देकर भूतनाथ की विचित्र घाटी से उसो सुरग की राह ले भागा जिधर से वे लोग गए थे। उस समय इन्दुमति की वैसी ही सूरत थी जैसी कि हम पहिले वयान में लिख पाए हैं, अथात् मर्दानी सूरत में तीर कमान और ढाल तलवार लगाए हुए थी । संभव था कि नकली प्रभाकरसिंह को उसके पहिचानने में धोखा होता परन्तु नही, उसका इन्दुमति से कुछ ऐसा सम्बन्ध था कि उसने उसके पहिचानने में जरा भी धोखा नही खाया बल्कि इन्दुमति को हर तरह से धोखे में डाल दिया । इन्दुमति ने भी प्रभाकरसिंह को वैसे ही ढग और पोशाक में पाया जैसा छोडा था परन्तु यदि वह विह्वल, दुखित और घवडाई हुई न होती तो उसके लिए नकली प्रमाकरसिंह का पहिचान लेना कुछ कठिन न था।
सुरग के बाहर होने वाद प्रास्मान की तरफ देख कर इन्दुमति को इस वात का खयाल हुमा कि रात हुआ ही चाहती है। वह सोचने लगी कि इस भयानक जगल से क्योंकर पार होंगे और रात भर कहा पर पाराम से विता सकेंगे, साथ ही उसे यकायक इस तरह पर गुलावसिंह को छोडना और भूतनाथ को घाटी से निकल भागना भी ताज्जुब में डाल रहा था। पूछने पर भी प्रभाकरसिंह ने उसको ठीक ठोक सवव नही बताया था, हा, वताने का वादा क्यिा था, मगर इससे उसकी वेचनी दूर नहीं हुई थी। उसका जी तन्ह तरह के युटको में पड़ा हुआ था और यह जानने के लिए वह वेचैन हो रही थी कि गुलाबसिंह ने उनका क्या नुकसान किया था जो उमफो भी छोड दिया गया ।