पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३०५

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६६ भूतनाथ तरफ पाने लगी मगर उसने झपट कर मुझे पकड लिया और एक मुक्का मेरी पीठ पर इस जोर से मारा कि मैं तिलमिला कर बैठ गई। उसने मुझे जबर्दस्ती कोई दवा सुघा दी जिससे मैं बेहोश हो गई और तनोबदन की सुध जाती रही, दूसरे दिन जब मैं होश में आई तो अपने को मैदान और जगल में पड़े हुए पाया, तब से मै आपको बराबर खोज रही है। प्रभाकर । (हरदेई की वेतुकी बातो को ताज्जुब से सुन कर) आखिर उसने तुझे इस तरह सता कर क्या फायदा उठाया ? हरदेई० । (कुछ घवडानी सी होकर) सो तो मै कुछ भी नहीं जानती। प्रभाकर० । उसने छुरी या खज्जर से तुझे जख्मी तो नही किया था? हरदेई० । जी नही। प्रभाकर० । मैं जब सो कर उठा तो तुझे ढूढने लगा। एक जगह केले की झुरमुट में तेरे कपडे का टुकडा ख्न से भीगा हुआ देखा था जिससे मुझे खयाल हुआ कि हरदेई को किसी ने खजर या छुरी से जख्मो किया है। हरदेई० । जी नहीं मुझे तो इस बात की कुछ भी खवर नही । प्रभाकर० । और वह महात्मा पुरुष कौन थे जिन्होंने तुझे बचाया अभी अभी तू कह चुकी है कि 'वेहोशी के वाद जब मै होश मे आई तो अपने को मैदान और जगल में पड़े हुए पाया' प्रस्तु कैसे समझा नाय कि किसी महापुरुप ने तुझे बचाया? नकली हरदेई के चेहरे पर घबडाट की निशानी छा गई और वह इस भाव को छिपाने के लिए मुड कर पीछे की तरफ देखने लगी मगर प्रभाकर- सिंह इस ढग को अच्छी तरह समझ गये और जरा तीखी आवाज में बोले, "वस मुझे ज्यादे देर तक ठहरने की फुरसत नहीं है, मेरी वातों का जवाब जल्दी जल्दी देती जा" हरदेई० । जी हा, जव मै खुलासे तौर पर अपना हाल कहूगी तब आपको मालूम हो जायगा कि वह महात्मा कौन था और अब कहा है जिसने मुझे वचाया था, अभी मैने सक्षेप ही में अपना हाल प्रापसे कहा था । प्रभा० । खर तो वह खुलासा हाल कहने में देर क्या है। अच्छा जाने ? 1