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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३०६

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६७ तीसरा हिस्सा ? दे सुलासा हाल भी मै सुन लूगा, पहिले तेरी तलाशी लिया चाहता हूँ । हरदेई० (घबडा कर) तलाशी कैसी और क्यो ? प्रभाकर० । इसका जवाब में तलाशी ले लेने के बाद दूंगा। हरदेई० । अाखिर मुझ पर आपको किस तरह का शक हुआ प्रभाकर०। मुझे कई बातो का शक हुअा जो मै अमो कहना नही चाहता। इतना कहते ही कहते प्रभाकर सिंह ने हरदेई का हाथ पकड लिया क्योकि उसके रग ढग से मालूम होता था कि वह भागना चाहती है । हर- देई ने पहिले चाहा कि झटका देकर अपने को प्रभाकरसिंह के कब्जे से छुडा ले मगर ऐसा न हो सका। प्रभाकरसिंह ने जब देखा कि यह धोखा देकर भाग जाने की फिक्र मे है तब उन्हें वेहिसाव क्रोध चढ पाया और एक मुक्का उसकी गरदन पर मार कर जबर्दस्ती उन्होने उसके ऊपर का कपडा खेच लिया । रामदास यद्यपि ऐयार था मगर उसमें इतनी ताकत न थी कि वह प्रभा- करसिंह का मुकाबला कर सकता । प्रभाकरसिंह के हाथ का मुक्का खाकर वह बेचन हो गया और उसकी आँसो के प्रागे अन्धेरा छा गया और फिर उसको हिम्मत न पडी कि वह भाग जाने के लिए उद्योग करे । प्रभाकर- सिंह को भी विश्वास हो गया कि यह हरदेई नहीं है बल्कि कोई ऐयार है। मामली कपडा उतार लेने के साथ ही प्रभाकरसिंह का वचा बचाया शक भी जाता रहा साथ ही इसके उन्होंने यह भी निश्चय कर लिया कि हमारी तिलिम्मी किताब जकर इसी ऐयार ने चुराई है। तिलिस्मी किताब पा जाने की उम्मीद में प्रभाकरसिंह ने जहा तक हो मका बढी होशियारी के माय उसकी तलाशी ली और उसके ऐयारी के बटुए में भी जिसे वह छिपा कर रखा हुए था देना मगर पिताव हाथ न लगी। तलाशी में नोपल ऐयारी का वटुया गजर और एक कटार उसके पास से मिला जिसे प्रभाकरसिंह ने अपने कब्जे में कर लिया और पूछा, ."वम अब तो तेरा भेद अच्छी तरह सुल गया । और यह बता कि तेरा क्या नाम है और मेरे साथ तूने इस तरह की दगावाजी क्यो की ?"