पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३०७

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भूतनाथ ? राम० । क्या जो कुछ में बताऊंगा उस पर आप विश्वास कर लेंगे? प्रभाकर० । नही। राम० । फिर इसे पूछने से फायदा ही क्या प्रभाकरसिंह ने क्रोष भरी आँखों से सिर से पैर तक उसे देखा और कहा, "वेशक कोई फायदा नही मगर तूने मेरे साथ बडी दगाबाजी की और व्यर्थ ही वेचारी इन्दुमति पर भूठा कलक लगा कर उसे और साथ ही इसके मुझे भी बर्बाद कर दिया ।" राम० । वेशक मैंने किया तो बहुत बुरा मगर मैं तो ऐयार हू, मालिक की भलाई के लिये उद्योग करना मेरा धर्म है । जो कुछ मुझसे बन पड़ा किया अव प्रापके कब्जे में हू, जो उचित और धर्म समझिये कीजिये। प्रभाकर० । (क्रोव को दवावे हुए ) तू किसका ऐयार है ? राम० । मैं पहिले ही कह चुका है कि मेरी बातो पर आपको विश्वास न होगा, फिर इन सब बातो को पूछने से फायदा क्या है ? प्रभाकरसिंह का दिल पहिले ही से जख्मी हो रहा था, अब जो मालूम हुआ कि हरदेई वास्तव में हरदेई नहीं है बल्कि कोई ऐयार है और इसने धोखा देकर अपना काम निकालने के लिये इन्दुमति जमना और सरस्वती को वदनाम किया था तो उनके दुख और क्रोध की सीमा न रही, तिस पर रामदास को ढिठाई ने उनको क्रोधाग्नि को और भडका दिया, अस्तु वे उचित अनुचित का कुछ भी विचार न कर सके। उन्होंने रामदास की कमर में एक लात ऐसो मारो कि वह सम्हल न सका और जमीन पर गिर पडा, इसके बाद लात और जूते से उसकी ऐसी खातिरदारी की कि वह वेहोश हो गया और उसके मुह से खून भो बहने लगा। इतने पर भी प्रभा- करसिंह का क्रोध शान्त न हुआ और वे उसे कुछ और सजा दिया चाहते थे कि सामने से आवाज आई, "हा हा, वस जाने दो, हो चुका, बहुत हुआ प्रभाकरसिंह ने ग्राख उठा कर सामने की तरफ देखा तो एक वृद्ध महात्मा पर उनकी निगाह पड़ी जो तेजी के साथ प्रभाकरसिंह की तरफ बढ़े पा रहे थे। 1 .