सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७० भूतनाथ प्राज्ञा कोजिये मैं करने को तैयार हू पर आपको कदाचित यह न मालूम हुना होगा कि इसने मुझे कसी कसी तकलीफें दो है और किस तरह मेरा सर्वनाश किया है, और इस समय भी यह कैसी ढिठाई के साथ बातें कर रहा है, अपना नाम तक नहीं बताता । बावा । मैं सब कुछ जानता हू, तुमने स्वयम् भूल कर अपने को इसके हाथ फसा दिया है, अगर वह किताब जिसमें इस तिलिस्म का कुछ थोडा सा हाल लिखा हुआ था और जो इन्द्रदेव ने तुमको दी थी इसने तुम्हारे जेब से न निकल ली होती तो यह कदापि यहाँ तक पहुँच न सकता, मगर अफसोस, तुमने पूरा धोखा खाया और उस किताव को भी बखूबी हिफाजत न कर सके। प्रभाकर० । बेशक ऐसा ही है, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई । अभी तक मुझे इस बात का पता न लगा कि वास्तव में यह कौन है । वावा० । हां तुम इसे नही जानते, हरदेई समझ कर तुम इसके हाथ से वर्वाद हो गये, यह असल में गदाधरसिंह का शागिर्द रामदास है। इसी ने असली हरदेई को धोखा देकर गिरफ्तार कर लिया और स्वयम हरदेई की सूरत वन जमना और सरस्वती को धोखे में डाला, इस तिलिस्मी घाटी का रास्ता देख लिया और भूतनाथ को इस घाटी के अन्दर लाकर जमना सरस्वती और इन्दुमति को प्राफत में फसा दिया । भूतनाथ ने अपने हिसाव से तो उन तीनो को मार ही डाला था परन्तु ईश्वर ने उन्हें बचा लिया, सुनो हम इसका खुलासा हाल तुमसे बयान करते हैं। इतना कह कर वावाजी नै भूतनाथ और रामदास का पूरा पूरा हाल जो हम ऊपर के वयानी में लिख पाए है कह सुनाया अर्थात् जिस तरह रामदास ने हरदेई को गिरफ्तार किया, स्वय हरदेई की सूरत बन कर कई दिनो तक जमना सरस्वती के साथ रहा, घाटी मे आने जाने का रास्ता देख कर भूतनाय को बताया, प्रभाकरसिंह की सूरत बन कर जिस तरह भूतनाथ इस घाटी के अन्दर माया, और जमना सरस्वती इन्दुमति तथा प्रौर लीडियो फो भी कुंए के अन्दर फेंक कर चखेडा त किया और अन्त में रामदास