पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३१०

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तीसरा हिस्सा स्वयं जिस तरह कूए के अन्दर जाकर खुद भी उसमे फस गया आदि आदि रत्ती रत्तो हाल बयान किया, जिसे सुनकर प्रभाकरसिंह हैरान हो गये और ताज्जुव करने लगे। ? प्रभाकर० । (प्राश्चर्य से) यह सव हाल आपको कैसे मालूम हुमा बाबा० । इसके पूछने की कोई जरूर नही है, जब हमको तुम पहि- चान जायोगे तव स्वयम् तुम्हें इमका सवव मालूम हो जायगा । (रामदास की तरफ देख के) क्यो रामदास । जो कुछ हमने कहा वह सव सच है या नहीं ? रामदास । बेशक आपने जो कुछ कहा सब सच है। वावा ०। (रामदास मे) व तो वतानो कि तुम्हारा गुरु भूतनाथ कहा है ? रामदास० । मुझे नही मालूम । वावा० । (हंस कर) अगर तुम्हें मालूम नहीं है तो मुझे जरूर मालूम है । (प्रभाकरसिंह से) अच्छा, अब हम जाते हैं, जरूरत होगी तो फिर मुला- कात करेंगे। हम केवल इसीलिए तुम्हारे पास आये थे कि इस रामदास और भूतनाथ को चालवाजी ने तुम्हें होशियार कर दे जिसमें इन लोगो के बहकाने में पड कर तुम जमना सरस्वती और इन्दुमति के साथ किसी तरह की चेमुरीबत्ती न कर जायो मगर अफसोस हमारे पहुँनने के पहिले हो तुमने इन लोगो के धोने में पड़ कर इन्दुमति और साथ ही उनके जमना सरस्वती का तिरस्कार कर दिया और उन लोगो के साथ ऐसा वर्ताव किया जो तुम्हारे ऐसे बुद्धिमान के योग्य न था। प्रभाकर० । (उबडवाई हुई आगो से और एक लम्बी सास लेकर ) बैशक मैने बहुत बुरा घोग्या साया, मेरी पिस्मत ने मुझे बा दिया और कहो या न रचला । (ग्राममान को नरफ देय कर) हे सर्वशक्तिमान जग- दोखर ? क्या मै एसो लिए इस दुनिया में पाया था कि तरह तरह को तकलीफें उठा ? जब से मैने होश सम्हाला तब से प्राज तया साल भर सुग में बैठना नसीव न हुघा ! किस किन दुग यो रोज पोर विन पिसको हाय, माता पिता पो अवस्था पर ध्यान देता हू तो कलेजा मुंह यो पाता है, अपनी दुर्दशा पर विचार करता है, तो दुनिया अन्धकार- यादा