पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३२७

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भूतनाथ देती है वही यहां से जाने का रास्ता है, इसमें एक ही पल्ला है और खंचने के लिए एक मुट्ठा लगा हुआ है, इसी मुट्ठे को चाभी समझना चाहिए। और देखो उस पालमारी के ऊपर क्या लिखा हुआ है ?" इतना कह कर नारायण ठहर गया और जमना का मुह देखने लगा जो कि उन बडे हरफो को गौर से देख रही थी। इन्दुमति प्रागे बढ़ गई और उसने उन अक्षरो को पढ़ करनारायण को सुनाया । यह लिखा हुआ था- "दक्षिण ऋषि वसुवाम, पुनरपि चन्दादित्य इमि पुनि इमि गनहु सुजान, जौलो वेद न पूरही । नारायण 10 । ठीक है, यही लिखा हुआ है, अच्छा बतायो इसका मत- लव क्या है? इन्दु० । मेरी समझ मे तो कुछ भी नही पाया, चाहे शब्दो का अर्थ कुछ लगा सकू मगर यह लिखा क्या है सो पाप जानिए । नारायण । यह इस दरवाजे को खोलने के विषय मे लिखा है। इसका मतलब यह है कि इस मुढे को (जो दर्वाजे में लगा हुआ है ) सात दफे दाहिने, पाठ दफे वायें, फिर एक दफे दाहिने और वारह दफे वाए घुमायो, इस तरह चार दफे करो तो दर्वाजा खुल जायगा। जमना० । ( कुछ देर तक उस लेख पर गौर करके ) ठीक है, इस लेख का यही मतलव है, मगर पढने वाला यह कैसे जान सकेगा कि यह लेख इसी मुढे को धुमाने के विषय मे लिखा है ? नारा० । यह बात होशियार प्रादमी अपनी अक्ल से समझ सकता है, तिलिस्म बनाने वाले विल्कुल साफ फि तो लिखेंगे नहीं । जमना० । ठीक है। नारायण । अच्छा तो अवागे वढो और अपने हाथ मे दर्वाजा खोलो। नारायण की प्राज्ञानुसार जमना ने ऊपर लिखे ढग से उस मुटे को धुमाया। दर्वाजा खुल गया और नीचे उतरने के लिए सीढियां दिखाई दी। सामने एक प्राला था और उसमे एक छोटा सा पीतल का सन्दूक रक्खा हमा था जिसमें किसी तरह का ताला लगा हुआ न पा । नारायण ने वह