पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३२६

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तोसरा हिस्सा रास्ता निकाल लेना बडा ही कठिन था मगर तीनो औरतो को लिए हुए नारायण अपने रास्ते पर इस तरह चले जाते थे मानो उन्हें सिवाय एक रास्ते या पगडएडो के काई दूसरा पगडाडो दिखाई देतो ही नहीं थी। उस भयानक जंगल में थोडो दूर चले जाने के बाद उन्हें ढालवी जमीन मिली और वे लोग पहाडी के नीचे उतरने लगे। जंगल पतला होता गया और वे लोग क्रमश. मैदान की हवा खाते हुए नीचे की तरफ जाने लगे। लगभग प्राध घन्टे के और चले जाने के बाद वे लोग एक खूबसूरत मकान के पास पहुचे जो बडी ऊंची चारदीवारी से घिरा हुआ था और अन्दर जाने के लिए सिर्फ पूरव तरफ एक बहुत वदा लोहे का फाटक था। वह मकान यद्यपि वाहर मे देखने में खूबसूरत और शानदार मालूम होता था मगर उसके अदर एक सहन और दस चारह कमरे तथा कोठडियो के सिवाय और कुछ भी न था मकान क्या मानो कोई महाराजी धर्मशाला मा। मकान के चारो तरफ वाग था मगर इस समय उसकी अवस्था जगल की सी दिखाई दे रही थी। उसके चारो तरफ ऊची चारदीवारी थी मगर वह भी कई जगह से मरम्मत के लायक हो रही थी। तीनो औरतो को साय लिए नारायण उन चारदीवार के अन्दर घुसे और इधर उधर देखते हुए उस इमारत के अन्दर चले गये जहा एक कमरे के अन्दर जाकर वे जमना ने बोले, "देखो जमना यह बाग के अन्दर जाने फा दरवाजा है । इस मकान में जितने कमरे है उन सभी को कही न कही जाने का रास्ता समझना चाहिये । मै तुम लोगो को जिन म्यान में ले जाया चाहता हू वहां का रास्ता यही है । मैं इस दवाजे का भेद तुमको दिना ग्रौर समझा देना नाहता है जिसमे यहा ने जाने माने के लिए तुम किमों को महनाज न रहो । भूतनाथ जिस किताब को पाकर फूल रहा है और जिसकी मदद से वह इस तिलिस्म के अन्दर चला पाया है उस किताब में इस इमारत का हाल पुछ भी नहीं लिया है इनलिए समन लना कि भूतनाग इसके अन्दर प्रामार तुम लोगो को नता नहीं माता । ( सामने को दीवार को तरफ इशारा करके ) देखो दीवार में जो वह पालमारो दिसाई