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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३३

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भूतनाथ ३६

तब उसे मालम हुआ कि उसके पीछे इन्दुमति नहीं है । वह घबडा कर पीछे की तरफ लौटा और “इन्दुमति, इन्दुमति" कह कर कुछ ऊचे स्वर से पुकारने लगा।

इन्दुमति पेड़ पर चढ कर छिपी हुई उसकी आवाज सुन रही थी मगर उसे खूब याद था कि उसके प्यारे पति ने आवश्यकता पड़ने पर भी कभी उसे इन्दुमति कह कर नही पुकारा । यह एक ऐसी बात थी जो केवल उन दोनो पति पत्नि ही से सम्बन्ध रखती थी, कोई तीसरा आदमी इसके जानने का अधिकारी न था।

नकली प्रभाकरसिंह इन्दुमति को पुकारता हुआ उससे भी ज्यादे पीछे हट गया जहां इन्दु छिपी हुई थी और इस बीच मे उसने तीन दफे जफील । सीटी) भी वूलाई, साथ हो इसके यह भी उसके मह से निकल पडा, "कम्बरत ठिकाने पहुच फर गायव हो गई !" यह वात इदुमति ने भी सुन ली।

जफील की आवाज से यहा कई श्रादमी पौर भी आ पहुंचे तथा नकली प्रभाकरसिंह के साथी बन गये जिन्हे देख इन्दुमति को विश्वास हो गया कि जो कुछ उसने यहाँ आकर सोचा था वही ठीक निकला, वास्तव में उसने पूरा घोखा खाया, और अव वह वैतरह दुश्मनो के काबू मे पडी हुई है।

इन्दुमति को खोजने वाले अव कई आदमी हो गये और वे इधर उधर फैल कर पेटो को प्राड तथा झुरमुट मे उसे सोजने लगे ।

तिथि के अनुसार रात को पहिलो कालिमा (अन्धेरी) वोत चुकी थी पोस्चन्द्रदेव उदय होकर धीरे धीरे ऊचे उठने लगे ये जिससे इन्दु घबडा गई और मन में सोचने लगी कि 'यह तो वटा अन्धेर हुया चाहता है। एक छिपे हुए इन्दु को यह अपना सा किया चाहता है । अव मै क्या करूं?'

प्रभाकरसिंह के साथ ही साथ जमाने ने भी उसे बहुत कुछ सिखला दिया था। तलवार चलाना और तीर का निशाना लगाना वह वखवी जानती थी, बल्कि तीरन्दाजी में उसे एक तरह का घमट था और इस समय उसके पास यह सामान मौजूद भी था जैसा कि हम ऊपर इशारा