पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३४

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३७ पहिला हिस्सा

कर चुके है कि इस समय उसकी पोशाक और सूरत वैसी ही थो जैमो कि हम पहिले बयान में दिखा चुके हैं ।'

जव कई दुश्मनो ने इन्दुमति को घेर लिया और चांदनी भी फैन कर वहा की हर एक चीजो की दिखाने लगो तर उमे विश्वास हो गया कि अव वह किसी तरह छिपी रह नही सकती, लोग जरूर उसे देख लेंगे पोर गिरफ्तार कर लेगे। प्रतएव उसने कमान पर तोर चढाया और संभल कर बैठ गई, सोच लिया कि जब तक तरकश में एक भी तोर मौजूद रहेगा किसी को अपने पास फटाने न दूगी।

इमी वोन मे मौका पाकर उसने नफलो प्रभाकरसिंह को याने तीर का निशाना बनाया । इन्दु के हाथ से निकला हुमा तोर नकली प्रमागरसिंह के पैर मे लगा और वह "हाय" करके वंठ गया। उसके सायो उसके चागेतरफ जमा हो गए और बोले, "वेशक वह इमो जगह कही है और यह नोर उनी ने मारा है । अव उमे हम जरूर पकड लेगे। तोर पूरब तरफ मंत्राया है।"

एक ओर तीर पाया और वह एक आदमी को पीठ को छककर छातो की तरफ से पार निकल पाया ।

अब तो उन लागो में सलमली पड गई और खोजने को हिम्मत जाती रही यरिक जान बचाने को फिक्र पद गई, मगर इस सयान ने कि तीर 'पूरव' तरफ ने घाया है और मारने वाला भी उनी तरफ किसी पेट पर दिपाहुना होगा, दोनो जजियो को छोड कर वाकी के लोग इन्दु को तरफ झरटे और चादनी को मदद पाकर वहन जल्द उस पेट को घर लिया जिन पर इन्तु छिपी हुई थी।

यब उन्दु ने अपने को जाहिर कर दिया और जरा ऊँचो प्रावाज में उसने दुरमनो ने कहा, "हा हा बेशक मैं माँ पेट पर हु, मगर याद रक्यो कि तुम लोगो को पिने पास याने न दूंगो बल्कि देखते हो दयते इस दुनिया ने उठा दूगो।"

इतना कह कर उसने उस पेड के नीचे के और भी एक प्रादमी को तोर