१०४ भूतनाथ हुआ तुम लोगो के पास आया हू । उनका हुक्म है कि तुम तीनो को अपने साथ ले जाकर उनके पास पहुंचा दू! जमना० । तुम्हारो वातो का हमे क्योंकर विश्वास हो ? क्या उनके हाथ की कोई चीठी भी लाये हो? दारोगा । हा, मै चीठी लाया हू । उन्होने खुद ही ख्याल करके एक चीठी भी अपने हाय से लिख कर दी है। जम्ना० । अगर ऐसा है तो लामो वह चीठी मुझे दो, मै पहिले उसे पढ लू तव तुम्हारी बातो पर विचार करू । दारोगा० । हा लो मै चीठी देता है यह रोशनी जो मेरे हाथ में है ज्यादे देर तक ठहर नहीं सकती इसलिए पहिले मै दूसरी रोशनी का इन्त जाम कर लू तव चीठी तलाश कर दू । इतना कह कर दारोगा ने वह डिविया जमीन पर रख दी और उसी की रोशनी में उसने अपना वटुमा खोल कर एक खाकी र ग की मोमबत्ती निकाली और चकमक से आग पैदा करके उससे रोशनो करने बाद वह डिविया वन्द करके अपने बटुए मे रख लो । अव दालान भर मे उसी मोम- वत्तो की रोशनी फैली हुई थी। वह मोमबत्तो कुछ खास तर्कोब और कई दवाइयो के योग से तैयार की गई थी। उसका र ग खाकी था और वलने पर उसमे से बेहोशो पैदा करने वाला बहुत ज्यादा धूमा निकलता था। दारोगा ने यह सोच कर कि शायद आज को कार्रवाई मे इस मोमवत्तो की जरूरत पढे, पहिले ही से अपने बचाव का बन्दोवस्त कर लिया था अर्थात् किसी तरह की दवा सा या मूघ लो थी मगर जमना सरस्वती पोर इन्दु. मति अपने को इस चूर मे वा नही सकती थी पोर न इस बात का उन्हे गुमान ही दृप्रा कि इस बेहिसाव घू या पैदा करने वाली मोमबत्ती मे कोई सास बात है। दारोगा ने मोमबत्ती वाल कर जमीन पर जमा दी और उसकी रोशनी मे प्रभाकरसिंह के हाथ की चोठी खोजने के बहाने से अपना बटुना टटो- लने लगा।
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