पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३४१

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१०६ ग्रामने बैठे हुए तिलिम्मी दारोगा पर निगाह पडने ही से विश्वास होता क इन तीनो पर इतनो सख्ती होने का कारण यही बेईमानदारोगा है। पहिले क्या क्या हो चुका है सो हम कुछ नही कह सकते परन्तु इस प हम देखते हैं कि वे तीनो अपनी वेबसी और मजदूरी पर जमीन की 6 देखती हुई गर्म गर्म प्रासू गिरा रही हैं और इस अवस्था मे कभी सर उठा कर दारोगा की तरफ देख भी लेती है। कुछ देर तक सन्नाटा रहने के बाद जमना ने एक लम्बी सास लो और उठा कर दारोगा की तरफ देख घीमी आवाज में कहा-"बहुत देर सोचने के बाद अब मैं आपको पहिचान गई और जान गई कि भाप निया राज के कर्ताधर्ता दारोगा साहब है।" दारोगा० । वेशक मैं वही हू, इस समय अपने प्रापको छिपाना नहीं ता इसलिए असली सूरत में तुम लोगो के सामने बैठा हुआ हूं। जमना० । ठीक है, तो मै समझती हू कि उस तिलिस्म के अदर हम गो को बेहोश करके यहा ले आने वाले भी आप ही है । दारोगा० । वेशक जमना० । प्राविर इसका कारण क्या है । हम लोगो ने प्रापका क्या डा है जो श्राप हमारे साथ इतनी मख्ती का बर्ताव कर रहे है ? दारोगा० । मेरा तो तुम लोगो ने कुछ भी नहीं विगाडा है मगर मेरे त भूतनाय को तुम लोग व्यर्थ सता रही हो इसलिए मुझे मजबूर तुम लोगो के साथ ऐसा वर्ताव करना पड़ा। जमना० । (क्रोध में प्राकर कुछ तेजी से) क्या भूतनाथ को हम भोग ा रही हैं । क्या वह हमलोगो को मिट्टी में मिला कर भी अभी तक वाज । पाता और वरावर जख्म लगाता नही जा रहा है । दारोगा० । कदाचित् ऐसा ही हो परन्तु उसका कहना तो यही है कि लोग व्यर्थ ही उमे कनकित करके दुनिया में रहने के अयोग्य बनाने की टा कर रही हो। | वडे अफसोस की बात है कि आप अपने मुह से ऐसे जमना० । माह