पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३४७

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भूतनाथ ११२ प त के घातक को भी खोज निकालेगा, नही तो अब तुम लोग उसके पजे में प्रा हो चुकी हौ । तुम लोग मुफ्त मे अपनी जान दोगी, और अपने साथ बेकसूर इन्दुमति पार प्रभाकरसिंह को भी बर्बाद करोगी, क्योकि इन दोनों की जान का सम्वन्ध भी तुम्हारी जान के साथ है । मैं तुमको दो घण्टे की मोहलत देता हू तब तक तुम अपने भले बुरे को अच्छी तरह सोच लो, दो घण्टे के बाद जब मैं पाऊगा तो भूतनाथ भी मेरे साथ होगा, उस समय या तो लोग भूतनाथ को अपना सच्चा दोस्त समझ कर उसके निर्दोप होने का एक पत्र उसे लिख दोगी और या फिर दूसरी अवस्था मे तुम तीनों ठढे ठढे दूसरी दुनिया की तरफ रवाना हो जानोगी और प्रभाकरसिंह भी तुम तीनो के साथ ही साथ खबरदारी के लिए रवाना कर दिये जायगे । इतना कह कर दारोगा वहा से रवाना हो गया और जब वह बाहर हो गया तो पुन उस जहन्नुमो कैदखाने का दर्वाजा वन्द हो गया और बाहर से भारी जजीर के खडकने की आवाज आई। । तीसरा हिस्सा समाप्त ॥ २४ वा सस्करण] १६६६ [११०० प्रति मुद्रक-लहरी प्रेस, वाराणसी ।