पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/४०

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पहिला हिस्सा
 


इन्दु०। यह कोई बात नहीं है, अगर है तो हकीमिनजी का केवल नखरा है और तुम लोगों का बहाना ।

कला० । अगर तुम ऐसा ही समझती हो तो लो आज में वह सब हाल कह दूंगी मगर शर्त यह है कि सिवाय बिमला के और किसी को भी मालूम न हो कि मैने तुमसे कुछ कहा था।

इन्दु० । नहीं नही, मै कसम खाकर कहती हूँ कि अपनी जुबान से किसी से भी कुछ न कहूंगी । कला० । अच्छा तो कुछ और रात बीत जाने दों और बिमला को भी आ जाने दो। इतने ही मे बिमला ने भी चौकठ के अन्दर पैर रक्शा ।

इन्दु० । लो विमला भी आ गई !

कला० । अच्छा हुआ मगर जरा सन्नाटा हो जाने दो।

विमला० । (कला के पास बैठ कर) क्या बात है ?

कला० । (धीरे से) ये यहा का हाल जानने के लिए बेताब हो रही है।

विमला० । इनका बेताब होना उचित ही है मगर (इन्दु की तरफ देख के) आप दुरुस्त हो जाती तब इसे पूछती तो अच्छा था, नहीं तो......

इन्दु० । यही हठ तो और भी उत्कण्ठित करता है।

विमला०। सुनने से आपको जितनी खुशी होगी उसमे ज्यादे रंज होगा।

इन्दु०। बला से, जो होगा देखा जायगा ! मगर (उदासी मे) तुमसे तो मुझे ऐसी आशा नही थी कि..

विमला० । (इन्दु का हाथ प्रेम से दबा कर) बहिन ! मै तुमसे कोई बात नही छिपाऊंगी, कहूंगी और जरूर कहूंगी।

इन्दु० । तो फिर कहो।

विमला० । अच्छा सुनो मगर किसी के सामने इस हाल को कभी दोहराना मत।

इन्दु० । नही कदापि नहीं।