सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१
पहिला हिस्सा
 


रहती है। जो लोग हमारे साथ है वे सब इन्द्रदेवजी के आदमी हैं मगर उनको भी यह नहीं मालूम है कि हम दोनो वास्तव में जमना और सरस्वती है ।

इन्दु० । (आश्चर्य से) क्या तुम्हारे घर में जितने आदमी हैं उनमे से किसी को भी तुम्हारा सच्चा हाल मालूम नही है ?

विमला० । किसी को भी नही ।

इन्दु० । तो फिर मेरे बारे में तुमने लोगो को क्या समझाया है

विमला० । मैने यह किसी को भी नही कहा कि तुम मेरी रिश्तेदार हो, केवल यही कहा है कि तुम्हे भूतनाथ तथा शिवदत्त के हाथ से बचाना हमारा धर्म है अस्तु अब उचित यही है कि हमारी तरह तुम भी अपनी मूरत बदल कर यहाँ रही और अपने दुश्मनो से बदला लो, हम लोगो का बाकी हालचाल तुम्हे आप ही धीरे धीरे मालूम हो जायगा ।

इन्दु० । ठीक है, और जैसा तुम कहती हो मैं वैसा ही करूंंगी, मगर (सिर झुका कर) मेरे पति का मुझमे......

विमला० । (बात काट कर) नही नहीं, उनके बारे में तुम कुछ भी चिन्ता मत करो, आज मै उनको तुम्हें जरूर दिखा दूंगी और फिर ऐसा बन्दोबस्त करूंगी कि तुम दोनो एक साथ...

इन्दु० । (प्रसन्न होकर) इनसे बढ़ कर मेरे लिए और कोई दूसरी बात नहीं हो सकती, मगर यह तो बताओ कि इस समय वे कहाँ है ?

विमला० । (मुस्कुराती हुई) इस समय वे वे मेरे ही घर मे है और मेरे कब्जे में है।

इन्दु० । (घबड़ा कर) यह कैसी बात ? अगर यहाँ है तो मुझे दिखाओ।

विमला० । मैं दिखाऊंगी, मगर जरा रुकावट के साथ ।

इन्दु० । सो क्यो?

विमला० । (कुछ सोच कर) अच्छा चलो पहिले मैं तुम्हें उनके दर्शन करा दूं फिर सलाह विचार करके जैसा होगा देखा जायगा। मगर इस सूरत में मैं तुम्हें उनके सामने न ले जाऊंगी।