मौलसिरी (मौलश्री) के पडे़ थे इन्दुमति की अाँखों के सामने था जिन्हें वह
बड़े गौर से देख रही थी बल्कि यो कहना चाहिए कि वहां की सुन्दरता
और कुदरती गुलबूटो ने इन्दु की निगाह पड़ने के साथ ही लुभा लिया और
इसके साथ ही प्रभाकरसिंह की याद मे आंसू बन कर निगाह के आगे पर्दा
डाल दिया।
आँखें साफ करके वह हर एक चीज को गौर से देखने लगी। इसी बीच एक चट्टान पर बैठे हुए प्रभाकरसिंह पर उसकी निगाह पड़ी जिनके चारो तरफ कुदरती सुन्दर पौधे और खुशरंग फूलो के पेड़ बहुतायत से थे जो उदास आदमी के दिल को भी अपनी तरफ खीच लेते थे और जिन पर सूर्य भगवान की ताजी ताजी किरणे पड़ रही थी।
आह ! प्रभाकरसिंह को देख कर इन्दुमति की कैसी अवस्था हो गई यह लिखना हमारी सामर्थ्य के बाहर है। वह कुछ देर तक एक टक उनकी तरफ देखती रही । न तो वहाँ से नीचे की तरफ उतरने का कोई रास्ता था और न वह यही जानती थी कि वहाँ तक क्योकर पहुँच सकेगी, अस्तु वह बेचैन होकर घूमी और यह कहती हुई विमला के गले से लिपट गई कि 'बहिन, तुम तो बेशक तिलिस्म की रानी हो गई हो ।।'
विमला० । बहिन ! घबड़ाओ मत, जरा गौर से देखो तो......
इन्दु० । (विमला को छोड़ कर) तो क्या जो कुछ मैं देख रही हूँ केवल भ्रम है ?
विमला० । नही ऐसा नहीं है?
इन्दु० । तो फिर यह स्थान किसका है ?
विमला० । इस समय तो मेरा ही है।
इन्दु० । तो क्या ये भी तुम्हारे ही मेहमान है?
विमला० । बेशक।
इन्दु० । कब से?
विमला० । कई दिनो से,या यो कहो कि जब से तुम आई हो उससे भी पहिले......