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भूतनाथ
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इन्दु० । (आश्चर्य दुख और क्लेश से) तब तुमने इनसे मुझे मिलाया क्यो नही बल्कि हाल तक नही कहा ऐसा क्यो ?

विमला० । इसके कहने का मौका ही कब मिला । अाज ही तो इस योग्य हुई हौ कि कुछ बातें कर सकू । इसके अतिरिक्त तुम्हारी मुलाकात के बाधक वे स्वयं भी हो रहे हैं । जिस तरह तुम मेरा साथ दिया चाहती हो उस तरह वे मेरा साथ नहीं चाहते, जिस तरह तुमसे मुझे उम्मीद है उस तरह उनसे नही, जिस तरह तुम मेरा पक्ष कर सकोगी सकती हो और करोगी उस तरह वे नहीं करते बल्कि आश्चर्य यह है कि वे भूतनाथ के पक्षपाती है और इसी बात का उन्हें हठ है, फिर तुम ही सोचो कि मैं क्योकर

इन्दु० । (जोर देकर) नही बहिन ! ऐसी भला क्या बात है। उन्हें सच्चे मामले की खबर न होगी।

विमला०। सब कुछ खबर है। इसी वास्ते में उन्हे यहाँ लाई थी और भूतनाथ के कब्जे से पहिले ही दिन जब तुम लोग सुरंग में घुसे थे छुड़ाने का उद्योग किया था परन्तु खेद है कि वे (प्रभाकरसिंह) तो मेरे कब्जे में आ गए और तुम आगे निकल गई जिससे तुम्हें इतना कष्ट भी भोगना पड़ा।

इन्दु० । (आश्चर्य से) सो कैसी बात ? क्या तुम्ही ने उन्हें मुझसे जुदा किया था?

विमला० । हाँ ऐसा ही है । (हाथ का इशारा करके) बस इस घाटी के बगल ही में उस तरफ भूतनाथ का स्थान है, रास्ता भी करीब करीब मिलता जुलता है । भूतनाथ की घाटी मे आने के लिए जो रास्ता या सुरंग है उसी में से एक रास्ता हमारे यहाँ भी आने के लिए है, इसके अतिरिक्त यहाँ आने के लिए एक रास्ता और भी है जिससे प्राय हम लोग आया जाया करते है । जिस समय तुम लोग भूतनाथ के साथ सुरंग में घुसे थे उस समय में देख रही थी।

इन्दु० । फिर तुमने कैसे उन्हें बुला लिया ।