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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/५३

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भूतनाथ
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सातवां बयान

प्रभाकरसिंह को इस घाटी में आए यद्यपि आज लगभग एक सप्ताह के हो गया मगर दिली तकलीफ के सिवाय और किसी बात को उन्हें तक- लीफ नहीं हुई । नहाने धोने खाने पीने सोने पहिरने इत्यादि सभी तरह का आराम था परन्तु इन्दु के लिए वे बहुत ही बेचैन और दुखी हो रहे थे। जिस समय वे इस घाटी में पाये थे उस समय बल्कि उसके दो तीन घण्टे बाद तक ये बडे़ ही फेर और तरद् दुद मे पडे़ रहे क्योकि कला और विमला ने उनके साथ बड़ी दिल्लगी की थी, मगर इसके बाद उनको घब- राहट कम हो गई जब कला और विमला ने उन्हें बता दिया कि वे दोनो वास्तव में जमना और सरस्वती है ।

पेड़ के साथ लटकते हुए हिंडोले पर बैठने वाली औरत ने उन्हें थोड़ी देर के लिए बड़े ही धोखे में डाला । जब उन्होने पेड़ पर चढ़ने का इरादा किया तो वहाँ पहरा देने वाले दोनो नौजवान लड़को ने गड़बड़ मचा दिया। ये दौड़ते हुए चले गए और कई आदमियो को बुला लाए जिन्होने प्रभाकर- सिंह को घेर लिया मगर किसी तरह की तकलीफ नही दी और न कोई कड़ी बात ही कही।

दोनो नौजवान लड़कों के हल्ला मचाने पर जितने आदमी वहा इकट्ठे हो गए थे वे सब कद में छोटे बल्कि उन्ही दोनो नौजवान सिपाहियो के बराबर थे जिन्हे देख प्रभाकरसिंह ताज्जुब करने लगे और विचारने लगे कि क्या ये लोग वास्तव में मर्द है ?

पहिले तो क्रोध के मारे प्रभाकरसिंह की आँखें लाल हो गई मगर जब कुछ सोचने विचारने पर उन्हें मालूम हो गया कि ये सब मर्द नही औरतें है तब उनका गुस्सा कुछ शान्त हुआ और उन सभी को इच्छानुसार वे उस बगंले के अन्दर चले गए जिसमें छोटे बडे़ सब मिला कर ग्यारह कमरे थे।