बीच वाले बड़े कमरे में साफ और सुथरा फर्श बिछा हुअा था। वहाँ
पहुँचने के साथ ही विमला पर उनकी निगाह पड़ी और वे पहिचान गए कि
मुझे भुलावा देकर वहाँ लाने वालियो में से यह भी एक औरत है जो बड़ी
ढिठाई के साथ इस अनूठे ढंग पर इस्तकवाल कर रही है ।
प्रभाकरसिंह ने विमला से कहा, "मालूम होता है कि यह मकान
आप ही का है।"
विमला० । जी हां समझ लीजिए कि आप ही का है।
प्रभाकर० । अच्छा तो मैं पूछता हूँ कि तुमने मेरे साथ ऐसा खोटा बर्ताव क्यो किया?
विमला० । मैने आपके साथ कोई बुरा बर्ताव नहीं किया बल्कि सच तो यो है कि आपको एक भयानक खोटे बेईमान और झूठे ऐयार के पंजे से बचाने का उद्योग किया जो कि सिवाय बुराई के कभी कोई भलाई का काम आपके साथ नही कर सकता था । अफसोस, आपको तो हम उसके फन्दे से निकाल लाए मगर बैचारी इन्दु फंसी रह गई जिसे बचाने के लिये हम लोग तन मन धन सभी अर्पण कर देंगे।
प्रभाकर० । इनमे कोई सन्देह नहीं कि इन्दु के लिये मुझे बहुत बड़ी चिन्ता है और मैं यह नहीं चाहता कि वह किसी अवस्था में भी मुझसे अलग हो, मगर में इस बात का कभी विश्वास नहीं कर सकता कि भूतनाथ हम लोगो के साथ खोटा बर्ताव करेगा। मै गुलाबसिंह की बात पर दृढ विश्वास रखता हूँ जिसने उसकी बड़ी तारीफ मुझसे की थी।
विमला० । नही ऐसा नहीं है, वह ....
प्रभा० । ( बात काट कर ) तुम्हारी बात मान लेना सहज नही है जिसने खुद मेरे साथ बुराई की । (क्रोध की मुद्रा से) बेशक तुमने मेरे साथ दुश्मनी की कि इन्दु को मुझसे जुदा करके एक आफत में डाल दिया! क्या जाने इस समय उन पर क्या बीत रही होगी!! हा, कहा है वह जिसे मै अपनी साली समझता था और जिसकी बात मान कर मैंने यह कष्ट