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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/५५

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भूतनाथ
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विमला० । नही नहीं, उन्होने झूठ नही लिखा, उन्हे यही मालूम है कि जमना सरस्वती दोनो मर गई , मगर वास्तव में हम दोनो जीती है।

प्रभाकर० । यह तो तुम और भी आश्चर्य की बात सुनाती हो !!

विमला० । आपके लिए बेशक आश्चर्य की बात है । इसी से तो मैंने आपसे प्रतिज्ञा करा ली कि मेरे भेद आप छिपाए रहें, जिनमें से एक यह भी बात है कि हमारा जीते रहना किसी को मालूम न होने पाये।

इतना कह कर विमला ने ताली बजाई । उसी समय तेजी के साथ सरस्वती (कला) एक दर्वाजा खोल कर कमरे के अन्दर आई और प्रभाकर- सिंह के पैरो पर गिर पड़ी। प्रभाकरसिंह ने प्रेम से उसे उठाया और कहा, "आह ! मैं इस समय तुम दोनो को देख कर बहुत ही प्रसन्न हुआ क्योकि सुरंग मे तुम दोनों को देखना विश्वास के योग्य न था। अब यह मालूम होना चाहिए कि तुम लोग यहाँ क्यो, किसके भरोसे पर, और किस नोयत से रहती हो, तथा बाहर मौलसिरी (मालश्री) के पेड़ पर मैने किसे देखा था ? नही नही , वह इस सरस्वती के सिवाय कोई और न थी, मैं पहि- चान गया, इसी की सूरत विशेष इन्दु से मिलती है।"

विमला० । बेशक वह सरस्वती ही भी, क्षण भर के लिए इसने आपके साथ दिल्लगी की थी।

कला० । (मुस्कुराती हुई) मगर जो कुछ मैं किया चाहती थी वह न कर सकी।

प्रभाकर० । वह क्या ?

कला० । बस अब उसका कहना ठीक नहीं ।

प्रभाकर० । अच्छा यह बताओ कि तुम लोग यहाँ छिप कर क्यों रहती थी?

विमला० । इसीलिए कि कम्बख्त भूतनाथ से बदला लेकर कलेजा कुछ ठंढा करें। आपको नहीं मालूम कि वह मेरे पति का घातक है। उसने अपने हाथ से उन्हें मार कर हम दोनो बहिनो को विधवा बना दिया !