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पहिला हिस्सा
 


एक लौंडी के सिवाय वहाँ और किसी को भी न देखा जिसकी जुबानी मालूम हुआ कि 'उनके आने में अभी घण्टे भर की देर है,तब तक आप कुछ जल खा लीजिए जिसका सामान उस नहाने वाली कोठड़ी में मौजूद है।'

"अच्छा" कह कर प्रभाकर सिंह ने उस लौंडी को तो विदा कर दिया और आप एक किनारे फर्श पर तकिए का सहारा लेकर लेट गए और कुछ चिन्ता करने लगे।

घण्टा भर क्या कई घण्टे बीत गए पर जमना और सरस्वती न आई और प्रभाकरसिंह तरह तरह की चिन्ता मे डूबे रहे, यहाँ तक कि उन्होंने कुछ जलपान भी न किया । जब थोड़ा सा दिन बाकी रह गया तब वे घबड़ा कर बंगले के बाहर निकले और मैदान में घूमने लगे। अभी इन्हें घूमते हुए कुछ ज्यादे देर नहीं हुई थी कि एक लौंडी बगले के अन्दर से निकली और दौड़ती हुई प्रभाकरसिंह के पास आई तथा एक चीठी उनके हाथ में देकर जवाब का इन्तजार लिए बिना ही वापस चली गई।

प्रभाकरसिंह ने चीठी खोल कर पढ़ी, यह लिखा हुआ था -

"श्रीमान् जीजाजी।

मैं एक बडे़ ही तरद् दुद में पड़ गई। मुझे मालूम हुआ है कि इन्दु बहिन बुरी आफत में पड़ा चाहती है, अस्तु मैं उन्ही की फिक्र मे जाती हूँ। लोट कर आपसे सब समाचार कहूंगी। आशा है कि तब तक आप सब के साथ यहाँ रहेंगे

विमला।"

इस चीठी ने प्रभाकरसिंह को बडे़ ही तरद् दुद में डाल दिया और तरह तरह की चिन्ता करते हुए वह उस मैदान में टहलने लगे। उन्हें कुछ भी सुघ न रही कि किस तरफ जा रहे हैं और किधर जाना चाहिए । उक्षर तरफ फा मैदान समाप्त करके वे पहाड़ी.के नीचे पहुचे और कई सायत तक रुके रहने के बाद एक पगडंडी.देख ऊपर की तरफ चलने लगे।

लगभग तीस या चालीस कदम के ऊपर गये होंगे, कि एक छोटा सा काठ

भू० १-५