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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/६३

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भूतनाथ
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 चलते फिरते नजर आए।

यह वही घाटी थी जिसमें भूतनाथ रहता था, जहां जाते हुए यकायक प्रभाकरसिंह गायब हो गए थे, और जहाँ इस समय गुलाबसिंह और इन्दुमति मौजूद है । प्रभाकरसिंह ने उस घाटी को देखा नही था इसलिए बडे़ गौर से उसकी सुन्दरता को देखने लगे। उन्हें इस बात की क्या खबर थी कि यह भूतनाथ का स्थान है और इस समय इसी में इन्दुमति विराज रही है तथा इस समय उनके देखते ही देखते वह एक भारी आफत में फँसा चाहती है।

प्रभाकरसिंह बराबर उद्योग कर रहे थे कि कदाचित् पत्थरो के हिलाने हटाने से कोई दर्वाजा निकल आवे और साथ ही इसके घड़ी घड़ी उन सूराखो की राह से उस पार की तरफ देख भी लेते थे। इसी बीच में उनकी निगाह यकायक इन्दुमति पर पड़ी जो पहाड़ की ऊंचाई पर से धीरे धीरे नीचे की तरफ उतर रही थी। बस फिर क्या था। उनका हाथ पत्थरो को हटाने के काम में रुक गया और वे बडे़ गौर से उसकी तरफ देखने लगे, साथ ही इसके उन्हें इस बात का भी विश्वास हो गया कि यही भूतनाथ का वह स्थान है जहाँ हम इन्मुमति के साथ आने वाले थे।

थोड़ी ही देर में इन्दु भी नीचे उतर आई और धीरे धीरे उस कुदरती बगीचे में टहलती हुई उस तरफ बढ़ी जिधर प्रभाकरसिंह थे और अन्त में एक पत्थर की चट्टान पर बैठ गई जो प्रभाकरसिंह से लगभग पचास साठ कदम की दूरी पर होगी।

अब प्रभाकरसिंह उससे मिलने के लिए बहुत ही बेचैन हुए मगर क्या कर सकते थे लाचार थे, तथापि उन्होंने उसे पुकारना शुरू किया। अभी दो ही आवाज दी थी कि उनकी निगाह और भी दो आदमियो पर पड़ी जो इन्दु से थोड़ी ही दूर पर एक मुहाने या सुरंग के अन्दर से निकले ये और इन्दु की तरफ बढ़ रहे थे। उन्हें देखते ही ईन्दु भी घबड़ा कर उनकी तरफ लपकी और पास पहुंच कर एक आदमी के पैरों पर गिर पढ़ी जो शक्ल सूरत में बिल्कुल ही प्रभाकरसिंह से मिलता था या यों कहिए कि वह सचमुच का