पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/६८

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७३ पहिला हिस्सा क्या हम कह सकते हैं कि प्रभाकरसिंह इन्दु की तरफ से वैफिक्र हो गए ? नहीं कदापि नहीं ! उन्हे कुछ ढाढस हो जाने पर भी कला को वातो पर पूरा विश्वास न हुआ । उनका दिल इस बात को कबूल नही करता था कि यदि कला और विमला दूर से या किसी छिपे ढंग से इन्दु को दिखला देती तो कोई हर्ज होता । वात तो यह है कि कला या विमला को इस तरह गुप्त रीति से आना जाना और रास्ते का पता न देना भी उन्हें बुरा मालूम होता था और उन लोगो परं विश्वास नही जमने देता था हां इस समय इतना जरुर हुया कि उनको विचार-प्रणाली का पक्ष कुछ बदल गया और वै पुरानी चिन्ता के साथ ही साथ किसी और चिन्ता में भी निमग्न होने लगे। कई घण्टे तक कुछ सोचने विचारने के बाद वे उठ खड़े हुए और दालानों कमरो तथा कोठडियो में घूमने फिरने और टोह लगाने के साथ ही साथ दीवारो पालो और पालमारियो पर भी निगाहें डालने लगे। पिछली रात का समय, इनके सिवाय कोई दूसरा आदमी बंगले के अन्दर न होने के कारण सन्नाटा छाया हुअा था, मगर जहां तक देखने में आता था कमरो और कोठडियो में रोशनी जरूर हो रही थीं। कमरो पौर कोठडियो मे छोटी बड़ी कई पालमारिया देखने में आई जिनमे से कइयो में तो ताला लगा हुआ था, कई विना ताले की थी और कई में किवाड के पल्ले भी न थे। इन्ही कोठडियो मे एक कोठडी ऐसी भी थी जिसमे अधकार था अर्थात् चिराग नहीं जलता था प्रतएव प्रभाकरसिंह ने चाहा कि इस कोठड़ी को भी अच्छी तरह देख लें। उसके पास वालो कोठडी में एक फर्शी शमादान जल रहा था जिसे उन्होंने उठा लिया मगर जब उस कोठडी के दरवाजे के पास पहुचे तो अन्दर से कुछ खटके की आवाज पाई। वे ठमक गए और उस तरफ ध्यान देकर सुनने लगे । प्रादमी के पैरो की चाप सो मालूम हुई जिससे गुमान हुप्रा कि कोई प्रादमी इसके अन्दर जरर है, मगर फिर कुछ मालूम न हुया घौर प्रभाकरसिंह शमादान लिए हुए उस कोठडो के अन्दर चले गए। .