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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/६९

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भूतनाथ
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और कोठडियो को तरह यह भी साफ और सुथरो थी तथा जमीन पर एक मामूली फर्श बिछा हुआ था। हा, छोटी छोटी आलमारियाँँ इसमें वहुत ज्यादे थी जिनमें से एक खुली हुई थी और उसका ताला ताली समेत उसकी कुण्डी के साथ अडा हुआ था। वह सिर्फ एक ही ताली न थी वल्कि तालियो का एक गुच्छा ही था।

ये शमादान लिए हुए उस आलमारी के पास चले गए और उसका पल्ला अच्छी तरह खोल दिया। इसमे तीन लो बने हुए थे जिनमें से एक में हाथ की लिखी हुई कई कितावें थी, दूसरे में कागज पत्र के छोटे वडे कई मुट्ठे थे, और तीसरे मे लोहे की कई बड़ी बड़ी तालियाँँ थी और सब के साथ एक एक पुर्जा वधा हुआ था। उन्होने एक ताली उठाई और उसके साथ का पुर्जा खोल कर पढा और फिर ज्यो का त्यो उसी तरह ठीक करके रख दिया, इसके बाद दूसरी ताली का पुर्जा पढा और उसी तरह रख देने के बाद फिर क्रमश सभी तालियो के साथ वाले पुर्जे पढ डाले और अन्त में एक ताली पुर्जे सहित उठा कर अपने जेब में रख ली।

तालियो की जाच करने के बाद उन कागजो के मुट्ठो पर हाथ डाला और घण्टे भर तक अच्छी तरह देखने जाचने के बाद उसमें मे भी तीन मुट्ठे लेकर अपने पास रख लिए और फिर किताबो की जाच शुरु की। इसमें उनका समय बहुत ज्यादे लगा मगर इसमें से कोई किताब उन्हाने ली नही।

उस आलमारी की तरफ से निश्चिन्त होने के बाद फिर उन्होने किसी और आलमारी को जानने या खोलने का इरादा नही किया। वे वहा से लोटे और शमादान जहां से उठाया था वहा रख कर अपने उसी कमरे में चले आये जहा आराम कर चुके थे। वहा भी वे ज्यादे देर तक नही ठहरे सिर्फ अपने कपड़ों और हवों की दुरुस्ती करके बँगले के बाहर निकले। आसमान की तरफ देखा तो मालूम हुआ कि रात बहुत कम वाकी है और आसमान पर पूरब तरफ सुफेदी फैला ही चाहती है।

“कुछ देर तक और ठहर जाना मुनासिव है।” यह सोच कर के इधर