पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/७५

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भूतनाथ ८०

प्रभा० । ( वात काट कर दिलासे के ढग से ) बस बस विमला बस, मुझे विश्वास हो गया कि तू सच्ची है और दिल का गुबार निकालने के लिए वेरी प्रतिज्ञा सराहने के योग्य है। मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि तेरे भेदो को तुझसे ज्यादा छिपाऊगा और तेरी इच्छा के विरुद्ध कमो किसी पर प्रगट न करूगा चाहे वह मेरा कैसा ही प्यारा क्यो न हो, साथ ही इसके मैं विश्वास दिलाता हूँ कि तू मुझसे स्वप्न में भी बुराई की भाशा न रखियो, मगर हाँ मैं भूतनाथ को जाच जरूर करूंगा कि वह कितने पानी में है।

बिमला० । (खुशो से प्रभाकरसिंह को प्रणाम करके) बस मैं इतना ही सुना चाहती थी, आपको इतनो प्रतिज्ञा मेरे लिए बहुत है। श्राप शोक से भूतनाथ की बल्कि साथ ही इसके मेरी भी जांच कीजिए मै इसके लिए कदापि न रोकूगी, मगर मैं खूब जानती हू कि भूतनाथ परले सिरे का वेईमान दगावाज और खुदगर्ज ऐयार है और ऐयारी के नाम में धव्वा लगाने वाला है। मै आपको एक चीज दूगी जो समय पड़ने पर भापको वचावेगी, वह चीज मुझे इन्द्रदेव ने दो है और वह पाप ऐसे बहादुर के पास रहने योग्य है। यदि आपकी इच्छा के विरुद्ध न हो तो मै इन्द्रदेव से भी आपकी मुलाकात कराऊगी।

प्रभाकर० । मैं बडो खुशी से इन्द्रदेव से मिलने के लिए तैयार हू, उनसे मिल कर मुझे कितनो खुशी होगी मैं वयान नहीं कर सकता। वे नि.सन्देह महात्मा हैं और मुझे उनसे मिलने को सख्त जरूरत है ! मै यह भी जानता हू कि वह मुझ पर कृपादृष्टि रखते हैं और ऐसे समय में मेरी भी-पूरी सहायता कर सकते है ।

विमला० नि सन्देह ऐसा ही है । आप इस घाटी में तीन दिन के लिए मेरी मेहमानी क्वूल करें, इन तीन दिनो में में कई प्रभुत.चीनें आपको दिसाऊंगी और इन्द्रदेवजी से भी मुलाकात कराऊंगी क्योकि कल वे यहाँ उम्र पावेंगे।

फत्ता० । (मुस्कुराती हुई दिल्लगी के साथ) मगर ऐसा न कीजिएगा