58 पहिला हिस्सा कि उस रात की तरह ये तीन दिन भी आप इस स्थान की तलाशी मे ही विता दें और हर रोज सुवह को एक नई घाटी से बाहर निकला करें। प्रभा० । मैं पहिले ही भावाज देने पर समझ गया था कि तुमने उस रात की कार्रवाई देस ली है, इसे दोहराने की कोई जरूरत न थी। अगर खुशी से तुम अपना घर न दिखायोगी तो मैं वेशक इसी तरह जवर्दस्ती देसने का उद्योग करूंगा। फला । जवर्दस्ती से कि चोरी से । उतना कह कर कला खिलखिला कर हंस पड़ी और तब कुछ देर तक इन सभी में इधर उधर की बातें होती रही, इसके बाद धूप ज्यादा निकल पाने के कारण सव कोई उठ कर चगले के अन्दर चले गए और वहा भी कई घण्टे तक हंची दिल्लगी तथा ताने और उलाहने की बातें होती रही। इस बीच में इन्दु ने अपनी दर्दनाक कहानी कह सुनाई और प्रभाकरसिंह ने भी अपनी वेवसी मे जो कुछ देखा सुनाया उससे वयान किया। दो पहर से ज्यादे दिन चढ चुका था जब विमला सभी को लिए हुए अपने महल में पाई । इतनी देर तक खुशी में किसी को भी नहाने धोने अथवा खाने पीने की सुध न रही । . नौवां वयान , तीन दिन नही बल्कि पाच दिन तक मेहमानी का आनन्द लूट कर प्राज प्रभाकरसिंह उस अद्भुत लोह के बाहर निकले है । इन पांच दिनो के अंदर उन्होने क्या क्या देखा सुना, किस किस स्थान की संर की, किस किस से मिन्ने जुले, तो हम यहां पर कुछ भी न पन्हेंगे, सिवाय इसके कि वे इन्दुमति को विमला और कला के पास छोड पाए हैं और इस काम ते बहुत प्रसन्न भी है। साथ ही इसके यह भी कह देना उचित जान पड़ता है कि अब उनके विचारों में बहुन वढा परिवर्तन हो गया। दिन पहर भर से कुछ फम बिकी है। प्रभाफरसिंह सिर झुकाये कुछ
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