पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/७८

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पहिला हिस्सा . प्रभा० । एक निर्जीव मूरत की जुवानी । भूत० । अव इस पहेली से तो काम नहीं चलता, खुलासा कहिए नही तो. प्रभा० । अच्छा बैठो और सुनो। दोनो वैठ गए और तव भूतनाथ ने प्रभाकरसिंह से पूछा भूत० । अच्छा प्रव कहिए कि क्या हुआ और किसकी जुबानी आपको इन्दुमति का हाल मालूम हुआ? प्रभा० । मैं कह चुका है कि एक निर्जीव मत को जुवानी मुझे बहुत कुछ हाल मालूम हुआ जिसे सुन कर तुम ताज्जुव करोगे । सुनो और आश्चर्य करो कि तुम्हारे पड़ोस में कमा एक विचित्र स्थान है । (रुक फर) नही नही , यह मेरो भूल है कि मैं ऐसा कहता हू, नि सन्देह उस विचित्र स्थान का हाल सबसे ज्यादे तुम्हो को मालूम होगा, मै तो नया मुसाफिर है भूतनाय. । आखिर किस स्थान के विषय में माप कह रहे हैं ? कुछ समझाइए भी तो। प्रभा० । (हाथ का इशारा करके) वस इसी तरफ थोडी ही दूर पर एक शिवालय है जिसके प्रदर शिवजी की नही बल्कि किसी तपस्वी ऋपि को मूर्ति है जो कि पूरे प्रादमी के कद की भूत। हा हा ठोक है, इस तरफ के जगली लोग अगस्त मुनि की मूर्ति कहते हैं, ग्यूब नम्वो लम्बी जटा है और मूर्ति के प्रागे एक छोटा सा कुण्ड है जिनमे हरदम जल भरा रहता है, न मालूम वह जल कहा से पाता है कि चाहे जितना भी सर्च करो कम होता ही नही । वह स्थान 'अगम्ता- श्रम' के नाम से पुकारा जाता है। प्रभा० । वस वस वन, वही स्थान है। भूत० । फिर उसमे क्या मतलव ? प्रभा० । उनी मूर्ति की जुवानो मुझे कई वातें मालुम हुई है, तुम्हें तो मालम ही होगा कि उसमें बात करने की शक्ति है।