७ | पहिला हिस्सा |
लिए मै जरा आगे बढ कर देखता हूँ कि कौन हैं।
इतना कह कर वह नौजवान उठ खड़ा हुआ और उसी तरफ वढा जिधर से वे लोग पा रहे थे। कुछ ही दूर आगे बढने और पहाडी से नीचे उतरने पर उन लोगो का सामना हो गया । यद्यपि रात का समय था और केवल चांदनी ही का सहारा था, तथापि सामना होते ही एक ने दूसरे को पहिचान लिया । हमारे नौजवान को मालूम हो गया कि ये हमारे दुश्मन के श्रादमी हैं और उन लोगो को निश्चय हो गया कि हमारे मालिक को इसी नौजवान के गिरफ्तारी की जरूरत है।
ये लोग जो दूर से गिनती में तीन चार मालूम पडते थे वास्तव मे छ. आदमी थे जो हर तरह से मजबूत और लडाई के सामान से दुरुस्त थे । ढाल तलवार के,पालावे सभी के कमर में खञ्जर और हाथ मे नेजा था। उन सभो में से एक ने आगे बढ कर नौजवान से कहा, "वडी खुशी की बात है कि आप स्वयम् हम लोगो के सामने चले आए। कल से हम लोग आपकी खोज में परेशान हो रहे है बल्कि सच तो यो है कि ईश्वर हो ने हम लोगो को यहां तक पहुचा दिया और यहां प्रापका सामना हो गया। क्षमा कोजि- एगा, पाप हमारे अफसर और हाकिम रह चुके हैं इसलिए हम लोग प्राप के साथ वेअदबी नहीं करना चाहते मगर क्या करें मालिक के हुक्म से लाचार हैं, जिसका नमक खाते है । इस बात को हम लोग खूब जानते हैं कि आप विल्कुल बेकसूर हैं और आप पर व्यर्थ ही जुल्म किया जा रहा है,परन्तु...
नौजवान० । ठीक है, ठीक है, मेरे प्यारे गुलावसिंह ! मै तुम्हे अभी तक वैसा ही समझता हू और प्यार करता है क्योकि तुम वास्तव ने नेक हो और मुझसे मुहब्बत रसते हो। तुम वेशक मुझे गिरफ्तार करने के लिए आये हो और मालिक के नमक का हक अदा किया चाहते हो, प्रस्तु मैं गुशी से तुम्हे आज्ञा देता हू कि तुम मुझे गिरफ्तार करके अपने मालिक के पास ले चलो, परन्तु क्षमियो का धर्म निवाहने के लिए में गिरफ्तार न होकर तुमसे लड़ाई अवश्य करूगा, इसी तरह तुम्हें भी मेरा मुलाहिजा न