पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/७

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भूतनाथ

औरत० । नि सन्देह ऐसा ही है, फिर आपने क्या विचार किया ? किसके राज्य मे जाने का इरादा है ?

मर्द । मुझे तो राजा सुरेन्द्रसिंह का राज्य बहुत ही पसन्द है, वह राजा धर्मात्मा और न्यायो है तया उनका राज्य भी बहुत दूर नहीं है, यहाँ से केवल तीन ही चार कोस और आगे निकल चलने पर उनकी सरहद मे पहुँच जायगे।

औरत०। वाह वाह । तो इससे बढ कर और क्या बात हो सकती है ! आप यह क्यो अटके हुए है । अागे वढ चलिए, जहाँ इतनी तकलीफ उठाई तहाँ थोडी और सही । ___मर्द ! मैं भी इसी खयाल मे हू मगर अपने नौकरो का इन्तजार कर रहा है क्योकि उन्हें अपने से मिलने के लिए यही ठिकाना बताया हुआ है।

औरत०। जव राजा सुरेन्द्रसिंह को सरहद इतनी नजदीक है और रास्ता प्रापका देखा हुमा है तो ऐसा अवस्या में यहाँ ठहर कर नौकरो का इन्तजार करना मेरी राय में तो ठीक नहीं है।

मर्द ०। तुम्हारा कहना ठीक है और नौगढ का रास्ता भी मेरा देखा हुया है परन्तु रात का समय है और इस तरफ का जगल वहुत ही घना और भयानक है तथा रास्ता भी पथरीला और पेचीला है, सम्भव है कि रास्ता भूल जाऊ और किसी दूसरी ही तरफ जा निकल । यदि मै अकेला होता तो कोई गम न था मगर तुमको साथ लेकर रात्रि के समय भयानक जानवगे मे भरे हुए ऐसे घने जगल में घुसना उचित नही जान पडता। मगर देखो तो सही (गर्दन उठा कर गौर गौर से नीचे की तरफ देख कर) वे शायद हमारे ही आदमी तो पा रहे है ? मगर गिनती मे कम मालूम होते है।

औरत० (गौर से देस कर) ये तो केवल तीन ही चार श्रादमी है शायद कोई और हो।

मर्द० । देसो वे लोग भी इसी पहाटी के ऊपर चले पा रहे हैं, अगर वे कोई और है तो उनका यहाँ पाकर तुम्हें देख लेना अच्छा न होगा इस