६५ पहिला हिस्सा इसके जवाब में भूतनाथ ने हाथ बढा कर एक को कलाई पकड ली, मगर साथ ही इसके दूसरे नकाबपोश ने भूतनाथ पर छुरी का वार किया जिसके लिए शायद वह पहिले ही से तैयार था। वह छुरी यद्यपि बहुत वडी न थी मगर भूतनाथ उसको चोट खाकर सम्हल न सका। छुरी भूत- नाथ के बगल में चार प्रगुल धंस गई और साय हो भूतनाथ यह कहता हुया जमीन पर गिर पडा-"नोफ 1 यह जहरीली छुरी......" बारहवां बयान कैदखाना बहुत दिन पहर भर से ज्यादे चढ चुका था जब भूतनाय की वेहोशी दूर हुई और वह चैतन्य होकर ताज्जुब के साथ चारो तरफ निगाहें दौडाने लगा। उसने अपने को एक ऐसे कैदखाने में पाया जिसमे से उसको हिम्मत और जवामर्दी उसे बाहर नहीं कर सकती थी। यद्यपि यह छोटा और अन्धकार से साती था मगर तीन तरफ से उसको दीवारें बहुत मजबूत और संगीन थी तथा चोधी तरफ लोहे का मजबूत जगला लगा हुया था जिसमें पाने के लिए छोटा सा दर्वाजा भो था जो इस समय बहुत वडे ताले से वन्द वा । इस मंदिपाने के अन्दर बैठा बैठा भूतनाथ अपने सामने का दृश्य बहुत अच्छी तरह देख सकता था। घोडी देर घर उपर निगाह दौडाने के बाद वह उठ पडा हृया और जंगले के पास पाकर वटे गौर से देखने लगा। उसके सामने वही सुन्दर जमीन और खुशनुमा घाटी थी जिसका हाल हम कपर वयान कर पाये है, जो कला और विमला के कब्जे में है, अथवा जहाँ की संर अभी अभी प्रभाकरसिंह कर पाये है। वीच वाले मुन्दर फमरे को भूतनाग बड़े गोर के साथ देख रहा था क्योकि वह कैदसाना जिसमें भूतनाथ कंद था, पहाट की ऊंचाई पर बना हुपा पा जहाँ से इस घाटो वा हर एफ हिस्सा साफ साफ दिखाई दे रहा था । उसको चालाक मौर चचल निगाहें